हर दिन कहते हैं मां तुझे सलाम..

इतनी ममता नदियों को भी माता कह के बुलाते हैं ,इतना आदर इन्सान तो क्या पत्थर भी पूजे जाते हैं..

कुछ लोग भूखे होते हैं इश्तिहारो में छपने के.. मगर कुछ हरदम रहते हैं इंसानियत में पाकीज़ा खुश्बू की तरह… इन मांओं को सलाम

इस घर के आगे मोहब्बत लिखा है

Manish Chandra

स्वाती सिंह

समाज सेवी पूर्व मंत्री स्वाती सिंह ने अपनी मां को प्रणाम करते हुए कहा कि
सृष्टि ने स्त्री को अनेक भूमिकाएं
प्रदान की है परंतु माता की भूमिका उसे अद्वितीय एवं वंदनीय बनाती है l “मां” एक विराट अनुभूति है ; जिसे शब्दों से नहीं सिर्फ भावनाओं से ही परिभाषित किया जा सकता है lआज हम संकल्प लें कि ना केवल अपनी जननी माता की … वरन दुनिया की समस्त माताओं की गरिमा और मान सम्मान की रक्षा करते हुए मानव सभ्यता को अनंत उच्चता प्रदान करेंगे ! मातृ दिवस के अवसर पर मातृशक्ति को कोटि-कोटि नमन !! वंदन !!….


दरअसल हम हिन्दुस्तानियों की ज़िंदगी का हर लम्हा जज़्बात से रूबरू होता है , तभी तो हम दिखावे से नहीं दिल से नायाब और असली हैं मेरी तरह हर करोड़ों भारतवासी रोज़ अपनी मां को महसूस करते हैं ,तभी तो गीतकार इंदीवर ने फिल्म पूरब पश्चिम में मां के लिए लिखा है…

“इतनी ममता नदियों को भी माता कह के बुलाते हैं ,इतना आदर इन्सान तो क्या पत्थर भी पूजे जाते हैं..

मतलब आपके मन की बात भी यही है कि भाई हम हर दिन अपनी मां को प्यार,स्नेह,आदर और उनका सत्कार करते हैं… अंतर्राष्ट्रीय सभ्यता ने सिर्फ एक दिन मां को समर्पित किया है अखबारों टीवी और विज्ञापनों ने हल्ला मचाया है बाजारवाद ने चाकलेट केक और गिफ्ट का बाज़ार सजाया है मगर हम हर दिन मां की महिमा को याद करते हैं ..विदेशी त्योहार की बदौलत मीडिया बॉक्स ने अपनी तरीके से हिंदुस्तानियों से मां की महिमा पर बात करके एहसासों का एक गुलदस्ता तैयार किया जो हम सभी को महका रहा है सबसे पहले जो मुझे लगता है वो ये है कि…..”खत्म हो जाएगी फूलों की खुश्बू ज़मीं से.. मगर किस्से कम नहीं होंगे हमारी माओं के” ..

बिष्ट मैडम

बात सन् 2012 के अक्टूबर की है जब मुझे सर्व शिक्षा अभियान योजना के तहत उत्तराखंड के स्कूलों की डाक्यूमेंट्री बनाने का मौका मिला शूटिंग के दौरान मैने जाना कि किस कदर मुश्किलों का सामना करके महिला अध्यापक पहाड़ों के स्कूलों में जाकर न सिर्फ सरकारी ड्यूटी निभा रही हैं बल्कि व्यक्तिगत परेशानियां भूलकर ममता बिखेर रही हैं तब मुझे वहां पढ़ाने वाले कई टीचरों से बात करने का मौका मिला लेकिन कई सालों बाद पता चला कि जिस टीचर बिष्ट मैडम को मैने एक दृष्टि हीन बिटिया को गोद में बिठाकर गाने गाते हुए शूट किया था और वो भावुक पल देखकर मैं वास्तविकता में रोया था ..उनका खुद का एक बच्चा भी स्पेशल चाइल्ड है और यह बात उन्होंने कभी भी जाहिर न होने देते हुए न सिर्फ शिक्षा विभाग की एक एजेंसी पर घोषित वेतन से कम दिये जा रहे वेतन पर काम करते हुए सरकारी संवेदनहीनता के बावजूद छात्रों के प्रति ममता को जीवित रखा बल्कि सर्व शिक्षा अभियान में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई..उस वक्त कई संविदा शिक्षकों ने एजेंसी के प्रति आवाज़ उठाई थी मगर कुछ हल निकलता ना देख कई लोगों ने नौकरियां भी छोड़ दी थी लेकिन बिष्ट मैडम ने अपना यह स्वभाव नहीं छोड़ा और आगे भी उन्होंने अपनी एक छोटी सी एन जी ओ बनाकर पति की मृत्यु के बाद इस काम को जारी रखा है मेरे जैसे कई लोग आज उनको वास्तविक मां का दर्जा देकर नमन कर रहे हैं।

इस घर के आगे मोहब्बत लिखा है ..

आप बाराबंकी के बंकी इलाके में किसी से भी शाइस्ता अख्तर आपा का घर पूछकर आसानी से पहुंच सकते हैं.. इनके घर का दरवाज़ा खुला देख कर आप देखकर समझ जाएंगे कि यहां सुबह से लेकर शाम तक दावतें खत्म नहीं होती मगर यह दावतें हमारे और आपके जैसे घरों की आम दावते नहीं है यहां पर दावते हैं दुआ की दावते हैं इंसानियत की और दावते हैं शाइस्ता आपा की मोहब्बत की… तभी तो उनके घर की दीवार पर सजे यह तमगे हमें यह बताते हैं कि भारत के हर मोहल्ले में एक शाइस्ता आपा का घर होना चाहिए , लखनऊ में एक बेहद खूबसूरत घर होने के बावजूद शाइस्ता 24 सालों से इस मकान को छोड़कर सिर्फ इसलिए नहीं जा रही हैं क्योंकि उनके मोहल्ले में रहने वाले तीन स्पेशल जिन्हें बच्चे क्या कहें उनकी उम्र खुद 23– 24 साल की है वह रोज तीन से चार बार तक शाइस्ता के घर चाय पानी नाश्ता करने आते हैं वो इन बच्चों की न सिर्फ देखभाल करती हैं बल्कि पड़ोस के इन बच्चों को जब उनके दादा दादी ने घर से निकाल दिया था तो आपा ने अपने घर में उन्हें जमीन देकर रहने का आसरा भी दिया है, आपा के घर की हर दीवार पर आपको प्रदेश सरकार और भारत सरकार के कई ऐसे अवार्ड देखने को मिल जाएंगे जिनमें बताया गया है कि वह किस तरह से समाज सेवा करती हैं उन्होंने महिलाओं का समूह बनाकर उनको आत्मनिर्भर बनाया है विभिन्न सरकारी योजनाओं में क्षेत्र की महिलाओं को लाभ दिला कर उनके जीवन में रोशनी करके रिश्तो वाली मां नहीं इंसानियत की मां होने के साथ सरकार से समाज रत्न एवार्ड भी पाया है, आपके सामाजिक कामों की फेहरिस्त बड़ी लंबी है फिलहाल आज यहां इतना ही आपके बारे में.. आपा आपको सलाम …

गार्गी मलिक


संयुक्त निदेशक दूरदर्शन श्रीमती गार्गी मलिक का कहना है कि मां शब्द नहीं संस्कारों की अनवरत संस्था और अनंत पाठशाला है जो निरंतर हर युग में हमारे संस्कारों का अभ्यासिक आचरण है,, मेरी मां हर वक्त हृदय की धड़कन की तरह मेरे साथ है जैसे कोई सांस की आवाज़ है..

डाॅ आरती साठे

छत्तीसगढ़ के आदिवासी परिवारों और महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक तरक्की के लिए काम करने वाली एमबीबीएस डॉक्टर आरती साठे जिन्होंने क्लास वन की नौकरी ठुकरा कर गांव गांव भटकते हुए नेचुरल फार्मिंग के जरिए सभी की थालियों में जहर मुक्त खाना पहुंचाने की मुहिम में अपनी पूरी जिंदगी लगा दी है.

छत्तीसगढ़ सरकार के अतिरिक्त भारत सरकार ने कई मंचों पर उनकी 15 साल की मेहनत को सराहते हुए कई खिताब दिए हैं -उनका कहना है कि” मां को मै किसी शब्द से परिभाषित कर ही नहीं सकती हूं”

स्वाति शर्मा

अपने विशेष बच्चे के जन्म की प्रेरणा से लखनऊ की स्वाति शर्मा ने स्पेशल एजुकेशन में b.ed करने के बाद आशा ज्योति में न सिर्फ अपने बच्चे का दाखिला करवाया बल्कि वहीं पर काम करने लगी सबसे पहले वह वहां की इंचार्ज बनाई गई और फिर उसके बाद वहां प्रिंसिपल के तौर पर आने वाले स्पेशल बच्चों को प्यार बांट कर समाज की मुख्यधारा में बराबर का सम्मान दिलाने के वास्ते आज भी निरंतर प्रयासरत हैं स्वाति के पढ़ाएं हुए बच्चे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के विशेष खिलाड़ी के तौर पर कई मेडल जीतकर लखनऊ और देश का नाम रोशन कर चुके हैं, इसी प्रेरणा की बदौलत स्वाति ने रेनबो सोसायटी फॉर डिफरेंटली एबल्ड नाम से संगठन की शुरुआत करके ऐसे बच्चों के लिए स्वावलंबन से सम्मान पूर्वक जिंदगी जीने का रास्ता खोज निकाला उनके इस प्रयास से यह विशेष बच्चे आज सुगंधित साबुन सुंदर कैंडल खिलौने और कपड़े के बैग बनाकर आर्थिक रूप से मजबूत बने हैं साथ ही उन्होंने उनकी हर जरूरत का ख्याल रखा है उन्होंने अपने इस केंद्र में इन बच्चों के लिए स्पीच थेरेपी, फिजियो थेरेपी योगा, गीत -संगीत मेडिटेशन और कई तरह के कोर्सों का इंतजाम करके इनके अभिभावकों में भी विश्वास जगाकर इन बच्चों के प्रति स्वाभाविक सम्मान पैदा किया है इन सब बच्चों के माता-पिता अपने से ज्यादा इनको सगी मां का दर्जा देकर इनको प्रणाम कर रहे हैं।

डॉ स्नेहिल पांडेय

उन्नाव के सोहरामऊ में एक ऐसा प्राथमिक विद्यालय जहां की शिक्षिका स्नेहिल पांडे को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से नवाज़ा है तो उसकी सच्चाई क्या है मीडिया बॉक्स की पड़ताल में आज सारा आंखों देखा हाल तब सामने आया जब गांव की एक अनपढ़ कौशल्या ने इस संवाददाता से यह कहा कि हमार स्नेहिल मैडम जैसी कोई नहीं तब हमको अपनी शिक्षा प्रणाली और ऐसे कर्मठ शिक्षकों पर गर्व होना चाहिए जो लगातार कई सालों से अपने वेतन से बालिका शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए निशुल्क विद्यालय आने के लिए साइकिले बांटती हो जो बच्चों को पढ़ाई के साथ साथ जीना सिखाती हो जो स्वच्छता अभियान के बारे में बताती हो किशोरावस्था में लड़कियों के हेल्थ चेक अप और मुफ्त गांव की महिलाओं को सेनेटरी नैपकिन बांटती हो और उनके स्वास्थ्य का देखभाल करना बताती हो तो हमें यह कहना ही पड़ेगा कि वह टीचर नहीं बल्कि असल में समाजसेवी है ऐसी ही स्नेहिल पांडे जैसी शिक्षक अगर पूरे देश में हो जाए तो उन्नाव के सोहरामऊ के इस विद्यालय की शाखाएं निजी स्कूलों की तरह ब्रांड बनाकर फ्रेंचाइजी के तौर पर समूचे देश में फैल जानी चाहिए जिससे न सिर्फ शिक्षा का उजियारा होगा बल्कि देशभर में इमानदारी की लौ जगमगा उठेगी,

रीता मित्तल


उद्यमी समाजसेवी रीता मित्तल जो कि अभिजात वर्ग से आती हैं मगर रहन-सहन और विचारों से बेहद सादगी से जीवन जीने वाली रीता मित्तल जी के जीवन में कोई भी कमी ना होने के बावजूद वह अपना अधिकांश समय समाज सेवा में बिताती हैं उनके पति यू एस मित्तल एक सीनियर आईएएस हैं बावजूद इसके उन्होंने अपना मुकाम समाज में स्वयं स्थापित किया है..रीता जी का कहना है कि औरत जो कर सकती है वह सृष्टि की कोई रचना नहीं कर सकती है अगर औरत ठान ले तो कुछ भी कर सकती है जो शक्ति औरत के पास है वह किसी के पास में नहीं यह बात अलग है कि काम के साथ बच्चों को संभालना मुश्किल तो है लेकिन नामुमकिन नहीं , मै दायित्वों के कई पदों पर रही हूं मैंने उन पर ईमानदारी से काम किया है उसी तरह अपने बच्चों को संभालने में भी इमानदारी की भूमिका निभाने की कोशिश की है…. मैं हर दिन अपनी मां को याद करती हूं और कोशिश करती हूं कि समाज को भी अपनी मां की तरह ही स्नेह देते हुए याद रखी जाऊं..

डाॅली रस्तोगी

टीवी एंकर वर्किंग वूमेन डॉली रस्तोगी ने कहा कि एक मां के रूप में मैंने जो काम किया है तो पूरी ईमानदारी से किया है वर्किंग वूमेन को परिवार को संभालने में जो मदद पूरे परिवार से मिलती है और किसी से नहीं हम कई किरदारों में जीते हैं कहीं मां है कहीं पत्नी लेकिन मां का जो किरदार होता है सबसे अहम होता है आज मैं खुद का अपना सैलून चला रही हूं और कई मांओं से रोज़ मिलना होता है इसलिए मैं कह सकती हूं कि मेरा हर दिन मदर्स डे होता है।

साॅफ्टवेयर इंजीनियर प्रिया

प्रिया ने कहा काम और बच्चों के बीच समन्वय स्थापित करना काफी मुश्किल होता है अगर आप अकेले हो घर में या जब आप हस्बैंड वाइफ दोनों ही काम करते हैं तो बच्चों को संभालना मुश्किल होता है लेकिन मेरी कोशिश होती है कि मैं अपने काम के साथ-साथ अपने बच्चों को संभाल सकूं आजकल कंपनी में अगर वर्किंग करने वाली महिला एक मदर है तो वह उनकी प्रॉब्लम को समझते हैं लेकिन आज के समय में परिवार का सपोर्ट भी बहुत जरूरी है और मैं अपने काम से ज्यादा अपने बच्चों को तरजीह देती हूं..

हमारे कैमरा मैन काकिल अविनाश ने एक संदेश भेजा है हम सबके लिए …

देखा बेकरी की दुकान पर मां के लिए केक लेने वालों की भीड़ .. खाली हाथ लौट कर मां के पैर दबा दिए मैने”…*

आर्टिकल के अंत में दोस्त नीरज ठाकुर की पत्नी सरिता ठाकुर ने एक रोज फोन करके यह बताया था कि आज उनकी मां पूरी हो गई मतलब साफ है वह क्या कहना चाहती थी लेकिन उन्होंने इस प्राकृतिक अंत को अंत ना कह कर संपूर्णता की बात कही सचमुच उस दिन हमारी आंखें भर आई और मां के लिए इस शब्द के मायने समझते हुए हम ने यह कहा मां जिंदा रहती है वह कभी मर नहीं सकती, वह पूरी होती है, पूर्ण होती है, संपूर्ण होती है …मां अनंत होती है।

मीडिया बॉक्स देश की इन सभी मांओं को नमन करने हुए कहता है कि

कुछ लोग भूखे होते हैं इश्तिहारो में छपने के.. मगर कुछ हरदम रहते हैं इंसानियत में पाकीज़ा खुश्बू की तरह… इन मांओं को सलाम

Research by Vishal Sonkar