कहानी कविता

विधवा

अरुणा मनवर *

विधवा वो जिसके नहीं होते हैं रिश्तेदार
सिर्फ और सिर्फ होते हैं पहरेदार….
कहां क्यों कैसे और किसके
बस यही सवाल रहते हैं उससे….
उसका बोलना, हंसना,
चलना, फिरना,
उठना और बैठना,
खाना-पीना और ओढ़ना….
इन सब पे नजरें रहती है सबकी
जैसे कि उसने जिंदगी
गिरवी रख दी हो खुद की….
दुनिया की नजरों में
पहले से अच्छी दिखती है अब वो ….
पर उसका वह अंतरात्मा का दर्द
वह हमेशा खुद ही सहती है…
विधवा वो जिसके नहीं होते हैं रिश्तेदार
सिर्फ और सिर्फ होते हैं पहरेदार…..

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