कहानी कविता

अपना हर दिन वैलेंटाइन संदेश

अरूणा मनवर

बिना प्रेम के हम कहां रह पाते हैं
कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक एक ही सुर में गाते हैं
हर दिन वेलेंटाइन डे का संदेश

हर दिन वेलेंटाइन डे का संदेश
हम 365 दिन वेलेंटाइन वाले हैं

हम कहाँ बिना प्रेम के रह पाते हैं

सीमा पर प्रहरी का तिरंगे के प्रति समर्पण संदेश
उससे कोसों दूर पत्नी का प्रतीक्षा संदेश
वर्णमाला पढ़ाते नौनिहालों को गुरु शिष्य आदर प्रेम सत्कार का संदेश

माटी में सने हल जोतते बैलों का वो श्रम गीत

गोधूलि में डूबते सूरज के बीच एक कतार में लौटते जानवरों का वह अनुशासन संकेत

किसी पहाड़ पर घास काटते गुनगुनाती महिलाओं का गीत और दूर बजती ट्रेन की सीटी के साथ अजनबियों के अभिवादन का संदेश वो कहां जानती होंगी वैलेंटाइन डे का मतलब फिर भी एहसास करा जाती हैं अपनी मुस्कानों से मध्धम सा कोई गीत

वो तोड़ती है दिन भर पत्थर धूप की चिंगारी के बीच अपने बच्चों को लिटा कर तपती ज़मीन पर और पीती है फिर एक लोटा पानी उसकी भूख में छिपा है बड़ी इमारतों का संदेश

हम 365 दिन हर वक्त कोई ना कोई प्रेम गीत गाते रहते हैं एक दूसरे को रिश्ते का मतलब समझाते रहते हैं।

पार्क में बैठे बुजुर्गों से जाकर समझो कैसे काटी उन्होंने अपनी उम्र पतझड़ सावन बसंत बहार कैसे गुजरे उनके दिन बिना इस अंग्रेजी त्यौहार फिर भी प्रेम करते रहे और हमें देते रहे अपने जीवन के अनुभवों का प्रेम गीत

मजदूर के माथे के पसीने की बूंद में भी हम ढूंढ लेते हैं दिन रात एहसासों का संदेश

एक देश में कितने देश हमारा तो हर दिन वैलेंटाइन संदेश

अरुणा मनवर


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