अरविंद वर्मा
पुरुष ने देखा
वह स्त्री से कमतर था
पुरुष जब श्रेष्ठ होने को आतुर हुआ
उसने अध्यात्म चुना
अध्यात्म के लिए उसने
सबसे पहले स्त्री को ही छोड़ दिया
पुरुष उसी दिन
स्त्री से हार गया था
स्त्री
जब-जब आध्यात्मिक हुई
उसने घर नही छोड़ा
वह रात में सोते बच्चे छोड
निकल नही आई
उसने कष्टों को स्वीकार किया
स्वीकार करना ही आध्यात्मिकता था
पुरुष यही बात नही जानता था
अध्यात्म
सहजता की यात्रा है
स्त्री की यह यात्रा
स्वाभाविक है
पुरुष कृत्रिमता से जीतने में
अक्सर हारा है
पुरुष
बाहर से बटोरता है
सामान भीतर भरता है
स्त्री अपना भीतर सँजोती है
करुणा बाहर उड़ेलती है
अध्यात्म स्त्री है
धर्म पुरुष है
अध्यात्म भीतर जाने की यात्रा है
धर्म बाहर से मज़बूत होने के द्वंद्व हैं
पुरुष ने
आध्यात्मिक होने के लिये
ज्ञान गढ़ा
ज्ञान के दम्भ में वह
जटिल होता गया
स्त्री ने करुणा रची
वह सहज हो गयी
स्त्री
उम्रदराज होती है
संवेदना की तीव्रता से भर जाती है
पुरुष उम्रदराज होता है
स्वयं केंद्रित हो जाता है।
साभार- काव्योदय फेसबुक वाॅल से