वैज्ञानिक तथ्य है कि सांप दूध नहीं पीते हैं। इसके बावजूद इन्हें दूध पीने को मजबूर करना या उन्हें जबरन दूध पिलाना अत्याचार है और ना ही हमारे धार्मिक ग्रंथ में सांपो को जबरन दूध पिलाने के लिए कहा गया है।
सांप के शरीर मे दूध पाचन हेतु एंजाइम नही पाया जाता है, यदि कई दिनों तक उसे भूखा रखकर दूध पिला भी दिया तो कुछ ही दिनों में निमोनिया होकर उल्टी करते हुए वह मर सकता है।
सांप बीन पर नहीं नाचता है। सांप में सुनने की शक्ति नहीं होती है। जमीन पर होने वाले कंपन से उसकी केंचुल में कंपन होने लगता है। इससे उसे आहट का अहसास होता है। अक्सर इस आहट को शिकार समझता है और प्रतिक्रिया देता है। सपेरे बीन बजाने के साथ बीन घुमाते है जिसे सांप शत्रु हमला मानकर अपने को बचाने के लिए अपने शरीर को घुमाने लगता है। लोगों को भ्रम हो जाता कि वह नाच रहा है।
साँप के मष्तिष्क में प्रमस्तिष्क गोलार्ध अर्थात सेरेब्रल होमोस्फीयर जो कि याददाश्त बनाये रखने के लिए जरूरी होता है, नही पाया जाता है। इस कारण सांप किसी भी बात को याद नही रख सकता तथा दुनियां का कोई भी सांप ना तो प्रशिक्षित किया जा सकता है और ना ही उसे पालतू बनाया जा सकता है। इसलिए सांपो के बदला लेने वाली बात गलत है मनगढ़ंत है।
सांप को पारिस्थितिक तंत्र की सबसे मजबूत कड़ी माना जाता है। सांपों को किसान का मित्र भी कहा जाता है। सांप चूहे, कीड़े, मकोड़ों, छिपकलियाें को खाता है। इसके चलते इको सिस्टम मजबूत रहता है। माना जाता है कि जुलाई-अगस्त में सांपों का प्रजनन होता है। इस कारण इनकी संख्या अधिक होती है।
धार्मिक पुस्तकों में नाग पंचमी के दिन शिव की पूजा का विधान है। सांपों को पकड़ना, उनका विष निकालना क्रूरता है। हिंदू धर्म क्रूरता नहीं सिखाता है। किसी भी जीव से क्रूरता पाप है।
वन्य जीव संरक्षण अधिनियम १९७२ के तहत शेड्यूल वन श्रेणी के प्राणी सांपों को पकड़ना, उनका प्रदर्शन करना कानूनन अपराध है।
NikhileshMishra साभार
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