श्रुति कुशवाहा
ख़ज़ल
अठारह साल कुछ कम नहीं होते मामा
सबके दामन में व्यापम नहीं होते मामा
या तो होता दिल्ली में कोई दिलदार सनम
या तो फिर साहिबे आलम नहीं होते मामा
इस फ़रेबी दुनिया में मेज़ वाले भी ग़म है
सिर्फ़ अकेली कुर्सी के ग़म नहीं होते मामा
और भी बंगले हैं श्यामला हिल के सिवा
अलबत्ता..कुछ घाव के मरहम नहीं होते मामा
साभार-श्रुति कुशवाहा के फेसबुक वॉल से
फोटो -सोशल मीडिया