श्राद्ध पिंण्ड दान: गंगा किनारे हरिद्वार में मिलता है पितरों को मोक्ष
गंगा किनारे हरिद्वार में मिलता है पितरों को मोक्ष

श्राद्ध पिंण्ड दान: गंगा किनारे हरिद्वार में मिलता है पितरों को मोक्ष

श्राद्ध पिंण्ड दान:देवभूमि उत्तराखंड का हरि की नगरी.. हरिद्वार यानि हिंदू धर्म का पवित्र और सुविख्यात तीर्थ स्थल।गंगा नदी के तट पर बसे इस शहर का धार्मिक महत्व पौराणिक है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार हरिद्वार में गंगा स्नान करने से जहां सभी पापों से मुक्ति मिलती है, वहीं दूसरी तरफ मृत्यु के पश्चात.. पितृपक्ष के दौरान हरिद्वार में किया गया श्राद्ध विशेष फल देता है।

Manish Chandra

PHOTO – MBI

श्राद्ध पिंण्ड दान के लिए बिहार की गया नगरी का भी बड़ा महत्व

जैसा कि आप सभी ये भी जानते हैं कि बिहार राज्य की गया नगरी को मोक्ष की नगरी के रूप में जाना जाता है, और कहा जाता है कि गया में किया गया तर्पण पितरों को मोक्ष दिलाता है,परंतु ऐसी धार्मिक मान्यता है कि हरिद्वार में हर की पौड़ी, सावंत घाट नारायणी शिला और कनखल में पिंडदान करने का महत्व सर्वोपरि है।

PHOTO – MBI

कहा जाता है कि हरिद्वार के नारायणी शिला मंदिर में पितरों का श्राद्ध पिंण्ड दान से उन्हें मोक्ष मिलने के साथ ही सुख संपत्ति की भी प्राप्ति होती है…एक पौराणिक कथा के जरिए यहां के धार्मिक महत्व को समझा जा सकता है। इस कथा के मुताबिक गयासुर नाम का एक राक्षस था। एक बार गयासुर देवलोक से भगवान विष्णु का श्री विग्रह लेकर भाग गया… जब वह भाग रहा था, तभी नारायण के विग्रह का धड़ उसके हाथ से छूटकर श्री बदरीनाथ धाम के ब्रह्म कपाली स्थान पर गिर गया..

PHOTO – MBI

हृदय, कंठ से लेकर नाभि तक का भाग हरिद्वार के नारायणी मंदिर में गिरा और चरण गया में जाकर गिरे..वहीं नारायण के चरणों में गिरकर ही गयासुर की भी मौत हो गई.. और उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई,क्योंकि हरिद्वार में नारायण के हृदय का भाग आया, जिससे इस स्थान का धार्मिक महत्व बढ़ गया। धार्मिक मान्यता के अनुसार क्योंकि मां लक्ष्मी श्री नारायण के हृदय में निवास करती है, अतः हरिद्वार में श्राद्ध कर्म का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है,यहां पर पितरों का पिंड दान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उन्हें जीवन मरण के बंधन से मुक्ति मिलती है।

PHOTO – MBI

पिंण्ड दान कैसे करें पूजा विधि

जिसके नाम से करना है उनका नाम लेकर को तर्पण देते समय अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें,”गोत्रे अस्मत्पितामह (दादा जी का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः”। पिता को तर्पण देते समय गंगा जल में दूध, तिल और जौ मिलाकर तीन बार पिता को जलांजलि दें।

PHOTO – MBI

ऐसे ही रोचक पहलुओं के लिए पढ़ते रहिए मीडिया बाॅक्स इंण्डिया डॉट कॉम …..

chandra.manish12@gmail.com

Photo- credit -google