इतने सारे झूठ

चंद्रा मनीष

खुल जाती है पोल जब
बेमानी कोशिशें की जाती है ढकनें की

तब
चेहरे की तबीयत उजड़ जाती है
बिगड़ जाती है रिदम ज़ुबान की

हमें पता है नंगे हो गए हैं हम..

फिर भी
सड़कों पर निकलते हैं बेशर्मी के कपड़े पहनकर..

इतने सारे झूठ ..ओढ़ कर

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