डॉ सुधीर शुक्ला दीवाली हो, दीवाल नहीं।रिश्तों का रखिए ख़्याल वहीं।। यह ज्योति पुंज करती प्रकाश।सब पर समान हो , यही भॉस । यह घना अंधेरा टिक न सके ।उजियारा इससे मिट न सके ।। सामाजिक ताने बाने का,खिलता यह अपना उपवन हो । यह दिवस तभी मंगलमय हो ।यह …
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