Main Slideझोला उठा के: व्यंग्य

सोना कितना सोना है, मिडिल क्लास को और कितना रोना है!”

(लेखक: ‘सुहैल सैफी’ की कलम – अब और भी तीखी!)

सोना कितना सोना है : आजकल सोना इतना ‘हाय-फाय’ हो गया है कि मिडिल क्लास वाले तो इसका रेट सुनकर ऐसे सन्न हो जाते हैं, जैसे गलती से अपनी पूरी सैलरी किसी क्रिप्टो करेंसी में लगा दी हो! अब तो सोना देखकर ऐसा लगता है मानो कोई दूर का रिश्तेदार आ गया हो – देखना अच्छा लगता है, पर खरीदने की हिम्मत नहीं होती!

सोना कितना सोना है महंगाई के डबल इंजन ने मिलकर दिल को ऐसी जगह गिरवी रखवा दिया है,

“सोना कितना सोना है”, ये डायलॉग अब रोमांटिक फिल्मों में नहीं, बल्कि फाइनेंस मिनिस्टर की प्रेस कॉन्फ्रेंस में होना चाहिए! पहले आशिक कहते थे, “तेरा दिल सोने का”, अब मिडिल क्लास धीरे से कहता है – “मेरा अगला लोन… शायद सोने का हो!” EMI की किश्तें और महंगाई के डबल इंजन ने मिलकर दिल को ऐसी जगह गिरवी रखवा दिया है, जहाँ से निकालने के लिए दूसरा जन्म लेना पड़े!

जब डोनाल्ड ट्रंप ने वो ‘टैरिफ तमाशा’ शुरू किया, तो हम इंडियंस सोच रहे थे, “अरे यार, ये तो अमेरिका और चीन का नाटक है, हम तो दर्शक हैं!” लेकिन अपनी शेयर मार्केट तो ऐसी चटपटी चाची निकली, जिसने तुरंत फुसफुसाया – “बेटा, ये ग्लोबल ड्रामा है! वहाँ किसी को छींक भी आए, तो यहाँ तुम्हें सर्दी लग जाएगी, समझो!”

ये शेयर बाज़ार भी ना… एकदम नखरीली गर्लफ्रेंड! हर छोटी बात पर रूठ जाती है – कभी एलन मस्क के ट्वीट से, कभी पेट्रोल के बढ़ते भाव से, और कभी रिज़र्व बैंक के गवर्नर साहब के मोज़ों के रंग से भी! ये बाज़ार कहती है – “मुझे थोड़ा ‘स्पेस’ दो!”, और बेचारा मिडिल क्लास अंदर ही अंदर कराहता है – “यार, मुझे तो हर महीने बिजली का बिल भरना है!”

अब तो मिडिल क्लास दो एकदम अलग टीमों में बंट गया है –

  1. वो बहादुर आत्माएं जो हर सुबह उठकर सोने का भाव चेक करती हैं – जैसे कोई सीरियल किलर अपनी अगली शिकार की लिस्ट देखता हो!
  2. वो ‘मास्टर प्लानर’ पति जो अपनी पत्नी को कॉन्फिडेंस से कहते हैं – “अरे डार्लिंग,अभी सोना बहुत महंगा है, देखना कल गिरेगा!” …और अगले दिन चुपचाप बर्तन धोते हुए अपनी किस्मत पर आँसू बहाते हैं।

अब आते हैं ‘जुगाड़’ पर, मतलब मिडिल क्लास के लिए सबसे बेहतरीन इन्वेस्टमेंट ऑप्शन्स:

नींबू पानी का ठेला – भाई साहब, इस महंगाई में तो नींबू भी 24 कैरेट गोल्ड से कम नहीं! और सबसे अच्छी बात, कोई GST नहीं!

गोलगप्पे का स्टॉल – कम लागत, ज़्यादा धमाका! और ट्रंप अंकल की ट्रेड वॉर का इस पर कोई असर नहीं। बल्कि मंदी आए तो लोग और टूट पड़ेंगे – गम भुलाने का सस्ता और टेस्टी तरीका!

रिश्तेदारों से दूरी बनाकर रखें – हर शादी, मुंडन और ‘हाउस वार्मिंग’ पर लिफाफा पकड़ाना… अब ये सीधा-सीधा ‘आर्थिक आतंकवाद’ है!

आखिर में बस इतना ही कहूँगा –

सोना चाहे आसमान छुए या पाताल में गिरे, मिडिल क्लास तो हमेशा बीच में सैंडविच बनेगा! बस एक ही उम्मीद की किरण बची है – कि शायद कभी इनकम टैक्स वाले भी मिडिल क्लास को ‘इंसान’ समझ लें… शायद!

बाकी टेंशन मत लो दोस्तों! मंदी तो आती-जाती रहेगी… पर मिडिल क्लास का दर्द? ये तो हमेशा ऐसे चमकेगा, जैसे किसी ने 24 कैरेट दर्द का हार पहन रखा हो!

– आपका हमदर्द और हँसाने का ठेकेदार, (साहित्य अकादमी वाले शायद गूगल ट्रांसलेट इस्तेमाल करते हैं, इसीलिए अब तक अनदेखा सुहैल सैफी!)

Photo – Google

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