Main Slideकहानी कविता

बस यही ज़िंदगी …

नीता शर्मा

आईने में खुद को देखकर
सोचती रहती हूँ,
क्या खोया क्या पाया
अक्सर तौलती रहती हूँ।

कुछ चेहरे, कुछ बातें
कुछ भूली बिसरी यादें,
ढूंढ रही हैं मुझे
क्या सही था क्या गलत
पूछ रही हैं मुझसे

जो पीछे मुड़ के देखा तो
कुछ यादें बुला रही थीं
अब तक के सफर की
बता रही थीं सारी बातें

कितनी मुश्किल राहें थीं
हम क्या क्या कर गए,
एक सुकून की तलाश में
कहां कहां से गुजर गए

कितने लोग मिले सफर में
कितने बिछड़ गए,
जन्मों तक साथ निभाने वाले
जाने किधर गए..

अलग ही ज़माना
वो अलग ही दौर
ज़िन्दगी जीने का
था मक़सद ही कुछ और

बचपन की नादानियां
थीं ख्वाबों भरी जवानियां
और घर की जिम्मेदारियां
काम धंधे की परेशानियां

हर उम्र के सपने अलग
खुशियों का पैमाना अलग
मंजिल अलग
था मोल अलग

उम्र के साथ साथ

बदलती रहती है सोच,
चाहत बदलती रहती है
बदलती रहती है खोज

इस मुकाम पर अब
आ गया है एक ठहराव
पता नहीं मंज़िल का तो
पर आ गया है पड़ाव अब

राहत मिलने लगी है बेचैन मन को

कर लिया समझौता तो,
ज़िन्दगी मुकम्मल लगने लगी है।

तेरा शुक्रिया ऊपर वाले
तुझसे कोई शिकवा गिला नहीं ,
यहां सब थोड़े अधूरे से हैं
किसी को मिला नहीं है पूरा

बहुत सारी कट गई
अब थोड़ी सी बची है,
किसी के होठों पे मुस्कुराऊँ
जाने के बाद भी याद आऊँ

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