डाॅ कल्पना सिंह
अब द्यूत कोई आंगन में मेरे फिर न खेला जाएगा
चीर हरण का काला वह इतिहास नहीं दोहराएगा
दु:शासन के हाथ मेरे केशों को न छूने पाएंगे
मर्यादा के रक्षक मेरे, मौन नहीं रह पाएंगे
मेरे सम्मान के रक्षण को, उन्हें धर्म सिखाया जाएगा
अब द्यूत कोई आंगन में मेरे – फिर न पल पाएगा शकुनि
मैं स्त्री हूँ इसका न अब मोल चुकाया जाएगा
इस गलती में मत रहना गोविन्द नहीं अब आएगे
मेरे अंतस से प्रतिपल गोविन्द मुखर हो जाएगे
मेरे कण कण से मां शक्ति शस्त्र उठा कर दौड़ेगी
अब कोई भी अग्नि सुता न मान घात फिर सह लेगी
अब कोई भी शकुनि कही मेरे घर में फिर न पल पाएगा
अब कोई भी अंधा बहरा शासक न फिर बन पाएगा
अब स्त्री की प्रचंड शक्ति का, विश्व ताण्डव देखेगा
न सुधरे तो सृजन भूल विध्वंस की ज्वाला देखेगा
अब द्यूत कोई आंगन में मेरे फिर न खेला जाएगा
चीर हरण का काला वह इतिहास नहीं दोहराएगा