चंद्रा मनीष
ये जो तुम बदल बदल गए हो…
पहले से ज्यादा मेरे अपने बन गए हो..
पहले हज़ार बार याद आते थे.. अब तो यादों से जाते ही नहीं हो..
बेचैनी इस बात पे है..
किस बात पर तुम बदल गए हो…
दिखता था जो तुम्हारी सूरत में साफ़-साफ़ ..
उसको छुपाने में अपना हाथ लगता है मुझे …
घुट रही है ज़िंदगी कुछ इस कदर कतरा कतरा
मानता हूं मैं खुद को कसूरवार..
तुम जो थे मेरे यकीन की उम्मीद.. अब हर लम्हा लगता है सूना सूना सा इतवार…
Written By
Chandra Manish
खींच लेता हूं यूं ही मन के कागज़ पे लकीरें कभी कभी कविता कहना गुस्ताख़ी होगी शायद..
chandra.manish12@gmail.com