.तू गंगा की मौज में जमुना की धारा
अभिनंदन शर्मा
दरबार लगा हुआ था, लोगों से खचाखच भरा हुआ था | जिल्ले-इलाही अपने सिंघासन पर बैठे हुए थे, एक तरफ तानसेन, अपने तानपुरे को लेकर संगेमरमर के चौक पर बैठे हुए थे और दूसरी तरफ एक बावरा, जो अपनी प्रेमिका ‘गौरी’ के प्रेम में पागल था, अपना तानपुरा लेकर बैठा हुआ था | मुकाबले में हारने वाले को, मौत की सजा होनी थी | अगर बैजू, जो गौरी के प्रेम में बावरा हो चुका था, हार जाता तो उसे सजा-ए-मौत मिलती और गौरी की दूसरी शादी हो जाती | बैजू को मुकाबला जीतना ही होगा |
मगर सामने तो खुद संगीत सम्राट तानसेन बैठे हुए हैं | वही तानसेन, जिसको मारने के लिए एक दिन बैजू तलवार लेकर किले में घुस गया था लेकिन मार न सका | पिता के अपमान का बदला सर पर सवार था, लेकिन हाथ में तलवार भी तानसेन को मार न सकी क्योंकि यहाँ अकेले में मारता तो तानसेन मरता नहीं, अमर हो जाता | इसलिए, तानसेन को भरी सभा में मारना जरूरी था | आज वो भरी सभा सज चुकी थी | जो मुकाबला जीतेगा, वो जिन्दा रहेगा और जो हारेगा, वो बादशाह-हुकूमत के हाथों मारा जाएगा |
मुकाबला शुरू हुआ, संगीत सम्राट तानसेन ने ऐसी तान छेड़ी कि सभा में बैठे लोग मुग्ध हो गये | राज्य के आसपास के जितने हिरन थे, वो जंगलों से निकल निकल कर, दरबार के आसपास इकट्ठे होने लगे | धीरे धीरे, दरबार के चारों ओर, पशु-पक्षियों का मेला सा लग गया | जैसे जैसे तानसेन, अपनी तान बढाते जा रहे थे, जमघट बढ़ता जा रहा था | लोगों में कौतूहल पैदा हो गया | अचानक संगीत सम्राट ने गाना बंद कर दिया | जैसे ही गाना बंद किया, सभी जानवर जहाँ से आये थे, वहीँ को लौट गए | तानसेन ने, मुस्कुराते हुए, मूछों पर ताव देते हुए, बैजू से कहा – “जो जानवर यहाँ आये थे और आकर चले गए, उन्हें दुबारा बुला सकते हो ?” बैजू बावरा, ने अपने तानपुरे को हाथ में लिया और अपनी मधुर आवाज में ऐसा हरि-भजन गाया कि जो-जो पशु पक्षी, सभा से जा चुके थे, उनका जमघट फिर से लगने लगा | दोनों की ही आवाज और सुरों में गजब का जादू था, जो जहाँ खडा था, वहीँ खड़ा उनको सुन रहा था | मामला बराबरी का रहा | अकबर का हुकुम आया कि इससे तो कुछ भी साबित नहीं हुआ, न कोई कम, न कोई ज्यादा | मुकाबला आगे बढ़ाया जाए |
संगीत सम्राट तानसेन ने मुकाबले में जीतने के लिए अगला राग चुना, ‘राग दीपक’ | जैसे-जैसे गायन आगे बढ़ा, दरबार में रखे सभी दीपक, जो रात को जलने थे, अपने आप ही रौशनी से जगमगा उठे | सभा में बैठे लोगों के माथे पर, गर्मी से पसीना चूने लगा | संगीत सम्राट खुद ऐसा लग रहे थे, जैसे आग की कोई भट्टी जल रही हो | ये राग दीपक, तानसेन के अलावा कोई भी ठीक ठीक नहीं गा सकता था | सभा में अफरा तफरी मच गयी लेकिन तभी एक सुरीली आवाज ने माहौल को बदल दिया | बैजू बावरा ने राग मल्हार गाना शुरू किया | सभा का तापमान धीरे धीरे ढलने लगा | ठंडी हवाएं बहने लगीं | भरी दोपहर में, देखते ही देखते बादल छा गये और बिजली कडकने लगी | राग परवान चढ़ रहा था और बारिश की बूंदों ने, पूरी नगरी को ढक लिया | पूरा शहर, इस मुकाबले को देखने को दरबार में आ चुका था | जो नहीं आ पाया था, वो बाहर से ही सुन रहा था |
पर मुकाबला तो ख़त्म ही नहीं हुआ | जिल्ले-इलाही वाह-वाह तो करते, लेकिन किसी को भी कम या ज्यादा नहीं पाते | उन्होंने दोनों को आदेश दिया कि कुछ ऐसा किया जाये, जिससे स्पष्ट हो जाए कि माँ सरस्वती का वरद हस्त किसके ऊपर अधिक है | इस बार शुरुआत बैजू बावरा ने की और उसने ऐसा राग गाया, कि तानसेन जिस संगेमरमर के पत्थर पर बैठे थे, वो पत्थर पिघलने लगा और तानसेन उस पत्थर में धीरे धीरे समाने लगे | बैजू बावरा, ऐसे गा रहे थे, मानो आज तानसेन को, उसी पत्थर की शिला में जिन्दा दफन कर देंगे | तानसेन कमर तक, उस पत्थर में धंस गये | अचानक बैजू ने गाना बंद कर दिया और पत्थर फिर से जम गया | बैजू ने, तानसेन के हाथ जोड़े और निवेदन किया – ‘प्रभु यदि उचित समझें तो गाकर इस पत्थर को दुबारा पिघला लीजिये और बाहर आ जाइए |’
तानसेन बैजू के इस कमाल को देखकर हतप्रभ उसको देख रहे थे | तानसेन ने, जिल्ले-इलाही की तरफ देखा, हाथ जोड़े और कहा – ‘महाराज, इस मुकाबले में हारने वाले को सजा-ए-मौत का एलान किया गया है | मैं अपनी हार मानकर बादशाह-सलामत से मौत की सजा चुनता हूँ | पूरे राज्य में खबर आग की तरह फ़ैल गयी | संगीत सम्राट तानसेन, आज एक बाबरे से हार गये | अकबर का शरीर कसमसा गया, जिसे उसने दरबार में नव-रत्नों में चुना, वो हार गया | अब राजा के पास तानसेन को मृत्युदंड देने के अलावा कोई चारा न था | पर पहले, बैजू से इनाम मांगने को कहा | बैजू ने कहा – “महाराज, संगीत को जीवन दीजिये |”
राजा को कुछ समझ नहीं आया | उसने साफ़ साफ़ बोलने को कहा तो बैजू बोला – “राज्य में संगीत के गाने पर जो रोक है, उसे हटा लिया जाए और तानसेन को मृत्युदंड न दिया जाए |”
मगर अकबर के फैसले को अकबर खुद भी नहीं बदलते तो आज भरे दरबार में, अपने प्रिय तानसेन को बचाने के लिए, अकबर कैसे अपना फैसला वापिस ले लें ? जनता में सन्देश जाएगा कि राजा ने, जनता के लिए कानून अलग बनाया हुआ है और अपनों के लिए कानून अलग | अकबर ने मना कर दिया, तानसेन को माफ़ी नहीं दी जा सकती | ये पहले ही तय हो चुका था | बैजू ने फिर निवेदन किया – माँ-बदौलत, तानसेन ही है, जिससे बदला लेने के लिए मैंने संगीत सीखा | अगर तानसेन नहीं होता तो आज बैजू भी इस सभा में नहीं होता | अगर बैजू है, तो तानसेन को रहना ही होगा | अगर तानसेन रहेगा, तो मेरे जैसे न जाने कितने बैजू आते रहेंगे | अकबर ने, बैजू की बात मान ली और तानसेन को छोड़ दिया |
बैजू अपनी प्रेमिका ‘गौरी’ से मिलने के लिए भागा लेकिन यमुना में बाढ़ हुई थी | नाविक ने यमुना में नाव उतारने से मना कर दिया | गौरी, अपनी दूसरी शादी से भाग आई और यमुना के किनारे आ गयी | पर दूसरी और बैजू दिखा | बैजू ने बाढ़ आई हुई यमुना में जिद करके नाव उतार दी | बैजू को तैरना नहीं आता था | नाव पलट गयी | गौरी को तैरना आता था, वो बैजू को बचाने के लिए पत्थरों को भी बहाने वाली धार में, कूद गयी | गौरी ने बैजू को पकड लिया, लेकिन इतने तेज बहाव में बैजू को लेकर तैर नहीं पा रही थी | गौरी ने, बैजू से पूछा कि तुमने तानसेन को हरा दिया ? बैजू ने कहा, हाँ, हरा दिया लेकिन अब इस यमुना की धार से हार जाऊँगा | तुम किनारे जाओ, तुम्हें तैरना आता है, मुझे छोड़ दो | गौरी ने कहा, तुमसे मिलकर अब कहाँ जाउंगी | संसार धारा को छोड़ कर तो किनारे के पास आई हूँ, अब किनारे को छोड़ कर कहाँ जाउंगी | तुम ही तो मेरा किनारा हो | बैजू ने गौरी को गले से लगा लिया | आओ गौरी, इस यमुना में, हम और तुम हमेशा के लिए बह जाएँ, अलग अलग बहुत रह लिए, अब इस यमुना में ही हमारा विवाह होगा | दोनों ने एक दुसरे को बाहों में भर लिया और यमुना की लहरों में बहते चले गए | प्रेम की एक कहानी, इतिहास में अमर हो गयी |
आज ही के दिन कलकत्ता में, होटल में, फिल्म देखी, बैजू बावरा | क्या फिल्म थी, क्या डायलॉग थे, क्या भारत भूषण की एक्टिंग थी और क्या गाने थे | ऐसी फ़िल्में अब नहीं बनतीं, जिनमें भावनाओं का ज्वार तो है, लेकिन कहानी में इतनी सादगी हो, कि लगे ही नहीं, फिल्म देख रहे हैं | खैर, देखने के बाद लिखने का मन किया सो लिख दिया | आप भी देखिये, इस फिल्म को | अच्छी लगेगी |
साभार-आओ देखें वर्ल्ड सिनेमा फेसबुक पेज से अभिनंदन शर्मा जी के द्वारा।
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