कहानी कविता

तुम्हारी टीस

चंद्रा मनीष उस छोटी सी बात से बिफर गए थे ..जो तुम्हारे वजूद के लिए बड़ी थी.. जब तुम दिल के दरवाज़े से मेरे अंदर दाखिल हुए थे..उसके बाद से मैंने किसी को आने नहीं दिया…अपने अंदर से तुमको कभी जाने नहीं दिया.. किस तरह से मैं बताऊं .. चाहता …

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ये जो तुम बदल गए हो

चंद्रा मनीष ये जो तुम बदल बदल गए हो…पहले से ज्यादा मेरे अपने बन गए हो..पहले हज़ार बार याद आते थे.. अब तो यादों से जाते ही नहीं हो.. बेचैनी इस बात पे है..किस बात पर तुम बदल गए हो… दिखता था जो तुम्हारी सूरत में साफ़-साफ़ ..उसको छुपाने में …

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एतबार

एतबार

अगर तुम पर न होता एतबारतो न करती कोई शिकवा इतने यकीन से.. ऊपरवाले नीचे आजरा बैठ मेरे पास एक एक दिन देख मेरा जैसा गुजार के…नही तो रुक थोड़ा..एक दिन आऊंगी ऊपर जरूर.. also Read- बस यही ज़िंदगी … फिर बैठ कर होगा जिंदगी का हिसाब मेरे हर कड़े …

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जरूरत पड़ेगी सफ़र में

जरूरत पड़ेगी सफ़र में

चंद्रा मनीष लिख कर रख लेना काग़ज़ पे मेरा नामजरूरत पड़ेगी सफ़र मेंजब ज़िन्दगी की शाम आएपुकार लेना मुझको फिर सेमैं जलाने आऊंगा चराग़काश तुम्हें कुछ तो याद आएमैं खड़ा हूं वहीं.हदें निगाह तक जहां गुबार ही गुबार है…

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बस यही ज़िंदगी …

bas yahi zindagi

आईने में खुद को देखकरसोचती रहती हूँ,क्या खोया क्या पायाअक्सर तौलती रहती हूँ। कुछ चेहरे, कुछ बातेंकुछ भूली बिसरी यादें,ढूंढ रही हैं मुझेक्या सही था क्या गलत पूछ रही हैं मुझसे जो पीछे मुड़ के देखा तोकुछ यादें बुला रही थींअब तक के सफर कीबता रही थीं सारी बातें कितनी …

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इतने सारे झूठ

चंद्रा मनीष खुल जाती है पोल जबबेमानी कोशिशें की जाती है ढकनें की तबचेहरे की तबीयत उजड़ जाती हैबिगड़ जाती है रिदम ज़ुबान की हमें पता है नंगे हो गए हैं हम.. फिर भीसड़कों पर निकलते हैं बेशर्मी के कपड़े पहनकर.. इतने सारे झूठ ..ओढ़ कर …………………………….. ये भी पढ़ें

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तुम्हें क्या बताएं

Chandra Manish तुम्हें क्या बताएं कि तुम मेरे लिए क्या हो.. ख्यालों का मेरे खुफ़िया पता हो तुम किसी सवालिया निशान की तरह…ज़ेहन पे चस्पा हो जवाब मिल गया होतातोशायद उतर ही जाते मेरे मनसेया फिर मुकर जाना ही चाहा मैने..तुम्हें इतना समझने के सच से भी कैसे मिटा पाता …

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नहीं सीखा मैंने..

नीता ये बात और है कि कोई,काफिला नहीं जीता मैंने,मगर ज़िन्दगी में,लड़खड़ाना नहीं सीखा.. आयेगी इक दिन,ये बाज़ी मेरी मुट्ठी में,क्यूँकि मैने कभी,पीठ दिखाना नहीं सीखा.. मैं हवा हूं चाहूं जिस ओर मुड़ जाऊंइन पर्वतों से टकरा के,गिर जाना नहीं सीखा.. नहीं चिराग है तो क्या ..अपना दिल जला लेती …

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देवभूमि गीत

मनीष चंद्रा मांग पे सजा हिन्दोस्ताँ के टीका कुदरत की बाँहों में फैला बागीचासम्बल जिसके जोश में ,बड़ा प्रचंड प्रबलक्रांति कांति धवल ,बनता बिखरता फिर सवंरताआज कल हर पल निर्मल हैशान से खड़े रहने की गरिमातीर्थों की इतनी पुरातन महिमासबको समेटे पहाड़ों की छातीगोद में जिसकी नदियां किलकिलातीदेवधरा का अद्भुत …

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उलझन

हेमलता पन्तजयपुर यह कहानी आप सबके लिए सुननी और देखनी जरूरी है हर किसी के साथ कभी ना कभी ऐसा हो सकता है तो फिर क्या हुआ ऐसा हेमलता जी के साथ जो कि आपको इस कहानी को पूरा सुनना और पढ़ना चाहिए देखिए सुनिए और फिर अपने दिमाग में …

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