कहानी कविता

बस यही ज़िंदगी …

bas yahi zindagi

आईने में खुद को देखकरसोचती रहती हूँ,क्या खोया क्या पायाअक्सर तौलती रहती हूँ। कुछ चेहरे, कुछ बातेंकुछ भूली बिसरी यादें,ढूंढ रही हैं मुझेक्या सही था क्या गलत पूछ रही हैं मुझसे जो पीछे मुड़ के देखा तोकुछ यादें बुला रही थींअब तक के सफर कीबता रही थीं सारी बातें कितनी …

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इतने सारे झूठ

चंद्रा मनीष खुल जाती है पोल जबबेमानी कोशिशें की जाती है ढकनें की तबचेहरे की तबीयत उजड़ जाती हैबिगड़ जाती है रिदम ज़ुबान की हमें पता है नंगे हो गए हैं हम.. फिर भीसड़कों पर निकलते हैं बेशर्मी के कपड़े पहनकर.. इतने सारे झूठ ..ओढ़ कर …………………………….. ये भी पढ़ें

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तुम्हें क्या बताएं

Chandra Manish तुम्हें क्या बताएं कि तुम मेरे लिए क्या हो.. ख्यालों का मेरे खुफ़िया पता हो तुम किसी सवालिया निशान की तरह…ज़ेहन पे चस्पा हो जवाब मिल गया होतातोशायद उतर ही जाते मेरे मनसेया फिर मुकर जाना ही चाहा मैने..तुम्हें इतना समझने के सच से भी कैसे मिटा पाता …

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नहीं सीखा मैंने..

नीता ये बात और है कि कोई,काफिला नहीं जीता मैंने,मगर ज़िन्दगी में,लड़खड़ाना नहीं सीखा.. आयेगी इक दिन,ये बाज़ी मेरी मुट्ठी में,क्यूँकि मैने कभी,पीठ दिखाना नहीं सीखा.. मैं हवा हूं चाहूं जिस ओर मुड़ जाऊंइन पर्वतों से टकरा के,गिर जाना नहीं सीखा.. नहीं चिराग है तो क्या ..अपना दिल जला लेती …

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देवभूमि गीत

मनीष चंद्रा मांग पे सजा हिन्दोस्ताँ के टीका कुदरत की बाँहों में फैला बागीचासम्बल जिसके जोश में ,बड़ा प्रचंड प्रबलक्रांति कांति धवल ,बनता बिखरता फिर सवंरताआज कल हर पल निर्मल हैशान से खड़े रहने की गरिमातीर्थों की इतनी पुरातन महिमासबको समेटे पहाड़ों की छातीगोद में जिसकी नदियां किलकिलातीदेवधरा का अद्भुत …

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उलझन

हेमलता पन्तजयपुर यह कहानी आप सबके लिए सुननी और देखनी जरूरी है हर किसी के साथ कभी ना कभी ऐसा हो सकता है तो फिर क्या हुआ ऐसा हेमलता जी के साथ जो कि आपको इस कहानी को पूरा सुनना और पढ़ना चाहिए देखिए सुनिए और फिर अपने दिमाग में …

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बासी रोटी

पूजा व्रत गुप्ता एक उम्र तक मुझे लगता रहाउसका नाम ही ” मेहतरानी ” हैजैसे एक थी नाइन माईंएक थी धोबिन अम्माएक थी बर्तन वालीऔर वो थी ” मेहतरानी “ मेरे बचपन मेंडलिया और झाड़ू उठायेवो रोज़ घर आतीमुँह पर धोती ( साड़ी ) का छोर टिकायेजोर से चिल्लाती” राख़ …

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स्त्री से हार गया पुरुष

अरविंद वर्मा पुरुष ने देखावह स्त्री से कमतर थापुरुष जब श्रेष्ठ होने को आतुर हुआउसने अध्यात्म चुनाअध्यात्म के लिए उसनेसबसे पहले स्त्री को ही छोड़ दियापुरुष उसी दिन स्त्री से हार गया था स्त्रीजब-जब आध्यात्मिक हुईउसने घर नही छोड़ावह रात में सोते बच्चे छोडनिकल नही आईउसने कष्टों को स्वीकार कियास्वीकार …

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मॉ

मनीष चंद्रा मॉ शब्द है पावन ..रीति नीति .. रिवाज है मनभावन…शिष्ट आचरण सीखें संस्कार जिससे..दया दान करुणा प्रेम निष्ठा स्नेह ममता सीखे भाव जिससे..हाड़ मांस की कायाजीवन ज्योति आलौकिक पुंज शिक्षा झलके जिससे.. ऐसी सृष्टि से जन्में हम सब बच्चेना तेरा है ना मेरा है मॉ शब्द सुनहरा है..

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अगली बार नहीं

नताशा हर्ष गुरनानीभोपाल_मां चलो जल्दी से तैयार हो जाओ हम सब घूमने जा रहे है। पर कहां बेटा? अरे चलो तो बेटा मेरी तबियत ठीक नहीं हैं घुटनों में दर्द है, मैं कैसे कहां घूम पाऊंगी? अरे मेरी मां चलो तो, मैं हूं ना अदिति तुम भी जल्दी तैयार हो …

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