चंद्रा मनीष
मेरे सिरहाने फिर आकर ..
एक कप चाय रख दो
थोड़ा प्यार से झुंझला कर..
फिर से कहो..
उठो पियो..
चाय ठंडी हो गयी
दिखाई पड़ती हैं अब भी..
आटा सानते वक्त तुम्हारी उतार कर रखी गयी अंगूठी ..
हर रोज़ मुझे
अक्सर तुम मोटी रोटियां.. जली भुनी पकाते थे..
हम चिल्लाते थे..
तुम चले गए..
खुली आंखों से मेरा रस्ता देख के ..
सचमुच मै मर गया
तुम्हारी चाय के इंतजार में..