ना तोड़ो कली कच्ची,
अभी डाली पे रहने दो।
बनके फूल प्यारा-सा,
अभी उपवन में खिलने दो।
करो न जुल्म कलियों पर,
कर लो प्यार इनसे तुम।
इनके भी हैं सपने,
उन्हें साकार कर दो तुम।
रौंदी जाएं ना कलियां
हक जीने का इनको है।
जहां में मुस्कराने का,
हक इनका भी तो है।
सजने दो संवरने दो,
खुद में रंग भरने दो।
जीवन के आनंद सारे,
ज़रा इनको भी जी लेने दो।
इन फूलों की खुशबू से
महक जाएगा ये उपवन।
पवन इतराए जी भर,
मन झूमे खुशी से…
हैं ये कुदरत के गहने फूलों से,
सजती है हर महफ़िल इनसे,
अब बस इनको खिलने दो।
सपना कुशवाहा
मेरी कलम
औरैया उत्तरप्रदेश