फूलदेई मतलब खुशियों का संदेश गीत

उत्तराखंड देव भूमि का पावन त्यौहार

मनीष चंद्रा

फूलदेई एक शब्द एक नाम इतनी मिठास है इस कोमल एहसास में सुनकर ही ऐसा ही लगता है.. जैसे किसी ने मन को महका दिया हो.. हमें सराबोर करके अंतर आत्मा को छू लिया हो.. ऐसा पावन नाम है उत्तराखंड के इस अद्भुत अतुलनीय अकल्पनीय त्योहार का.. प्रकृति और पर्यावरण के सम्मान का धरती पर इतना बड़ा त्यौहार शायद कहीं नहीं है जितना कि प्रकृति के अद्भुत उपहार के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करने वाला यह फूलदेई त्यौहार शायद इसीलिए उत्तराखंड को हम देवभूमि भी कहते हैं,

चैत महीने की शुरुआत में ऋतुराज बसंत आगमन के स्वागत के लिए जब पहाड़ों पर फ्योली के सुंदर पीले फूल खिलते हैं तब बच्चों के द्वारा इस अनुपम त्यौहार की शुरुआत तड़के सवेरे से ही हो जाती है जिसमें बच्चे अपने घरों के आसपास और पहाड़ों से चुनकर प्राकृतिक रूप से उगने वाले फूलों को विशेषकर सरसों की पीले फूल और फ्यूली के फूल थाली में सजाकर अपने आसपास के पड़ोसियों के साथ ही मंदिर की डेहरी पर यह पुष्प अर्पित करके उसे सजाते हैं और सभी की संपन्नता, आरोग्यता की कामना करते हैं और बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं इन बच्चों को फुलारी कहा जाता है, बूढ़े बुजुर्ग इन बच्चों को उपहार स्वरूप दान दक्षिणा और मिठाई देकर उनका उत्साहवर्धन करते हैं।

चैत महिने के आरंभ में इन दिनों पहाड़ों में फ्यूंली ,लाई,ग्वीयार्ल,बुरांस, किनगोड़ और हिसर इत्यादि के फूल खिलने लगे जाते हैं यह त्यौहार पहाड़ की परंपरा और संस्कृति में रक्त की तरह शामिल है जो हमें प्रकृति और पर्यावरण से ना सिर्फ प्रेम को दर्शाता है बल्कि हमें पर्यावरण संरक्षण का नैतिक ,सांस्कृतिक संदेश देता है,और हमें इन फूलों की तरह ही आपस में खुशियों की सुंगध बांटनी चाहिए

पुरानी मान्यता है कि जब कैलाश पर्वत पर शिव अपनी शीतकाल की तपस्या में कई वर्षों तक तल्लीन थे और वह अपनी साधना तोड़ नहीं रहे थे तब देवताओं सहित मां पार्वती को बेहद चिंता हुई तब मां पार्वती ने यह पावन युक्ति सोची जिसमें की उन्होंने देवताओं को बाल रूप में पीले वस्त्र धारण करके देव क्यारियों से सुगंधित फूल तोड़कर लाने और शिव की आराधना करते हुए उनकी साधना को तोड़ने के लिए यह गीत गाया जिसमें शिव के प्रकोप से बचने के लिए क्षमादान के साथ ही उपासना के यह स्वर शामिल थे.. #फूलदेई क्षमा देई भर भकार द्वार आए महाराज# शिव की नींद टूटी और अपने सामने बच्चों को देखकर वह नाराज नहीं हुए बल्कि वह प्रसन्न होकर उनके साथ खुशी मनाने लगे तभी से पहाड़ों में यह त्यौहार मनाया जाता है जिसको बच्चे आज भी गा करके कुछ इस त्यौहार मनाते हैं…

फूलदेई,छम्मा देई देणी द्वार,भर भकार, ये देली से बारंबार नमस्कार, फूले द्वार.फूलदेई, छम्मा देई, फूलदेई माता फ्यूला फूल, दे दे माई दाल चौल..

इन लोगों ने भी दी बधाई
योगी आदित्यनाथ

पुष्कर सिंह धामी

प्रेम सिंह फरस्वाण ( सीनियर वीडियो जर्नलिस्ट ) ने यूपी से सोशल मीडिया के जरिए अपने संदेश में सभी को शुभकामनाएं दीं

पूर्व डीजीपी अनिल रतूड़ी और उनकी पत्नी अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने गढ़वाली में अपने अंदाज में गीत गाकर सभी को फूलदेई की बधाई दी

पहाड़ के इस पारंपरिक त्योहार को बचाने और विश्व कल्याण के लिए सबसे महत्वपूर्ण शख्स जो सामने आए उनका नाम है शशि भूषण मैठाणी , शशि भूषण ने सीनियर जर्नलिस्ट रमेश भट्ट के चैनल देवभूमि डायलॉग के फूलदेई कार्यक्रम में बताया कि किस तरह से वह 2004 से गोपेश्वर से लेकर पूरी दुनिया में आज लोगों को प्रकृति के इस अनूठे जीवनदायी त्यौहार के बारे में लोगों को जागरूक करके विश्व पर्यावरण और ग्लोबल वार्मिंग के प्रति सचेत कर रहे हैं.. उन्होंने 2012 मैं इस त्यौहार की चेतना का संचार करने के लिए देहरादून का रुख किया कुछ बच्चों को साथ लेकर वह इस त्यौहार के दिन लोगों के घर घर जाकर उनको इसकी जरूरत के बारे में सचेत करते रहे..

शशि भूषण ने 2014 में राजभवन और मुख्यमंत्री आवास में इस कार्यक्रम को मनाने की नींव डाली और आज उनके प्रयास से यह त्यौहार विश्व के कई देशों में लोग मना रहे हैं साथ ही वह इसके फोटो और विजुअल सोशल मीडिया में शेयर कर रहे हैं.

रमेश भट्ट ने अपने कार्यक्रम में शशि भूषण को इस त्यौहार को बच्चों के पाठ्यक्रम में शामिल करने का सुझाव दिया इसके साथ ही शशि भूषण और भट्ट ने इस त्यौहार को बाजार और आर्थिकी से जोड़ने की बात कही शशि भूषण ने बताया कि इस त्यौहार में पुराने वाद्य यंत्रों को जिसमें ढोल और मसक बीन बजाई जाती है इन वाद्य यंत्रों को बजाने वालों के पास आज काम नहीं बचा है उन्होंने कहा कि यदि हम इस त्यौहार की सार्थकता चाहते हैं तो हमें वाद्य यंत्र बजाने वाले इस समुदाय का संरक्षण भी करना पड़ेगा तभी तो उन्होंने आज मुख्यमंत्री आवास पर कार्यवाहक मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी का यह वक्तव्य भी बताया कि जब आज मुख्यमंत्री आवास पर वह बच्चों को लेकर इन वाद्य यंत्रों के साथ में पहुंचे तो वहां पर बैंड बाजा बजाया जा रहा था जिसको पुष्कर सिंह धामी ने बंद करने का आदेश दिया उनका यह आदेश बताता है कि वह भी इस परंपरा में संस्कृति की खुशबू चाहते हैं, मैठाणी ने रमेश भट्ट को बताया कि आज इन वाद्य यंत्रों को बजाने वाला कोई इसलिए नहीं बचा है क्योंकि हम उनका संरक्षण नहीं कर पा रहे हैं वह बड़ी मुश्किल से रायपुर से ढूंढ कर इन लोगों को आज फूलदेई के मौके पर मुख्यमंत्री आवास ले गए थे जहां पर उन्होंने इन लोगों को ₹10000 रूपए दिये साथ ही कार्यक्रम में शामिल लोगों ने भी इन लोगों को कुछ दान दक्षिणा दी जिससे कि साफ तौर पर पता चलता है कि यदि हम इस तरह के पारंपरिक त्योहारों का यदि संरक्षण करेंगे तो हमारी आने वाली पीढ़ी को भी हमारी संस्कृति का ज्ञान तो होगा ही साथ ही साथ प्रकृति पर्यावरण और रोजगार के समन्वय से पहाड़ को जीवित रखा जा सकता है.

देवभूमि डायलॉग के इस खास प्रोग्राम के अंत में रमेश भट्ट और शशि भूषण ने कई बिंदुओं पर चर्चा करते हुए इसको व्यापकता प्रदान करने के लिए अपने कुछ सुझाव भी दर्शकों के सामने रखें जिस पर आगे भविष्य में सार्थक कदम उठाए जाएंगे ऐसा प्रतीत होता दिख रहा है।
हमारी भी लोगों से अपील है कि यदि उत्तराखंड के बारे में कुछ बेहतर समझना हो तो देवभूमि डायलॉग जरूर देखें ताकि पहाड़ की संस्कृति का सही चिंतन सही वक्त पर हम कर सकें.. सभी को मीडिया बॉक्स इंडिया परिवार की तरफ से फूलदेई की हार्दिक शुभकामनाएं।