प्रेम में मरती लड़कियां

Virendra Bhatiya

लड़कियां सूरज से प्रेम करती हैं
करती रहती हैं
जल चढ़ाती हैं
ठंडा करती हैं बार-बार
गुस्साये सूरज के
प्रेम में जलती रहती हैं
जल मरती हैं

लड़कियां समन्दर से प्रेम करती हैं
खार मिटा देने की जिद लिए
समन्दर के भीतर घुस जाती हैं
भर मिठास/भर नदी
खारा खारा ही रहता है
मर जाती हैं लड़कियां
खार के समन्दर में डूब कर

लड़कियां चांद से प्रेम करती हैं
प्रेम में चांद की तरह घटती हैं/बढ़ती हैँ
चांद कहलाने की उत्कंठा में बेजार वे
अमावस का चांद हो जाती हैं एक दिन

लड़कियां आसमान से प्रेम करती हैं
आसमान की ओर देखती हैं भर नज़र
आसमान से मिलने की सब सूरत बदसूरत पाती हैं
तड़पती हैं शिकार हुई चिड़िया सी
तड़प कर मर जाती हैं

लोग कहते हैं
लड़की मर कर तारा बन जाती है
आसमान चढ़ जाती है

असंख्य तारे हैं आसमान में
लड़की देखती है
और भीतर तक सिहर जाती है

(सूरज, समन्दर, चांद, आसमान सब पुरुष के लिये प्रयोग किये गए बिंब हैं)

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