मनीष चंद्रा
कहीं हम ऐसा ना कहें कि एक था जोशीमठ या फिर कल सब बोलने लग जाए ये अब नया जोशीमठ है पुराना वाला उजड़ गया। कुदरत की बनाई जमीन पर इंसान की बनाई बस्ती कुछ इंसानों की वैज्ञानिक सोंच कारण ही तबाह और बर्बाद भी हुई है।बशीर बद्र का एक शेर जबरदस्ती कह रहा हूं यहां के हालात पर
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में
एक दशक से ज्यादा पहले जब जोशीमठ के बिल्कुल ठीक ऊपर चाई गांव में जेपी द्वारा हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट बनाया जा रहा था जिससे बिजली आज भी बनाई जा रही है उस वक्त जो टनल और सुरंगे जमीन के नीचे कई मंजिलों तक को खोदी जा रही थी तब भी लोगों ने पहाड़ के इस स्थानीय जनजीवन की क्षति की चिंता जाहिर की थी और तभी से इस चाई गांव में मकानों में दरारे पड़ना शुरू हो गई थी तमाम शिकायतों के बावजूद ना तो जे पी वाले चेते और ना ही सरकारों ने कोई वैज्ञानिक विकल्प अपनाया उस वक्त यहां से तेरह परिवार विस्थापित हो गए थे और वह नीचे जोशीमठ में चले आए.
जे पी वालों ने गांव वालों से उनकी तरक्की का वादा किया था सड़क स्कूल घर अस्पताल और नौकरी का झूठा वादा गांव वालों का कहना है गांव की प्रधान शकुन्तला देवी के पति विजेंद्र पवार का कहना है कि नौकरी तो दूर सड़क तक यहां कभी नहीं बनी गांव के सिर्फ दो लोगों को ही नौकरी दी इसके बाद जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति का गठन हुआ और लोग तब से लेकर आज तक आंदोलन करते हैं मगर यह आंदोलन सिर्फ जोशीमठ तक ही सीमित हो बार-बार रह जाता है तब से कई बार इलेक्शन हो चुके हैं कई नेता जीत चुके हैं वो लोगों की अर्जियां कब का फाड़ के कूड़ेदान में फेंक चुके हैं शायद वह देखना चाहते थे जोशीमठ की बर्बादी की यह मौजूदा तस्वीर ।
आपदा कोई आज का विषय नहीं है ये भौगोलिक परिस्थितियों के कारण आती जाती रहती हैं लेकिन हमारी इतनी तरक्की करने के बावजूद भी हम यह नहीं समझे कि कई आपदाएं मैन मेड डिजास्टर होती है जो हमारी ही अंधाधुंध प्राकृतिक संपदा के दोहन से उत्पन्न होती हैं.
पर्यावरण चिंतक डॉक्टर शशि शेखर सिंह एडिशनल एसपी का कहना है कि यदि हम अपनी दोहन की भूख को संतुलित और संयमित कर लेते और वैज्ञानिक नियमों को मानते तो हम तरक्की के लिए कई दूसरे सस्टेनेबल विकल्प तलाश कर लेते जैसा कि अमेरिका जैसे देशों में होता है वहां पर प्राकृतिक और भौगोलिक संपदा को विकास के खातिर ज्यादा छेड़ा नहीं जाता है बल्कि तकनीकी रूप से विकास के दूसरे विकल्प खोजे जाते हैं।
सबको पता था कि जोशीमठ सीस्मिक जोन 5 में आता है जो की अति संवेदनशील है जहां पर कभी हल्का सा भी भूकंप आया तो पहाड़ में पहले से मौजूद दरारे पल भर नहीं लगाएंगी इस जगह को जमीन के नीचे और नीचे अपने आप में धंसाने के लिए क्योंकि जेपी के प्रोजेक्ट ने पहले ही पहाड़ों को छील दिया था।
हम जानते हैं कि सरकार की भी मजबूरी है क्योंकि केदारनाथ बद्रीनाथ और हेमकुंड जाने के लिए जोशीमठ सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव है इसलिए वहां पर यातायात और सड़कों के बेहतर साधन राज्य के टूरिज्म के लिए जरूरी है लेकिन बहुत बारीक बात ये है कि हालात और स्थिति का जायजा किस तरह से लिया गया था जो अब दरारों से धंसते मकान और बेघर होती जिंदगी का फैसला बन गया था..
दुर्गा प्रसाद जैसी दहशत झेली है किसी ने..
सुनील गांव का वो मकान जो जोशीमठ की आज की त्रासदी का पहला इंडिकेटर था जिसके मालिक दुर्गा प्रसाद सकलानी लगातार जोशीमठ प्रशासन और नेताओं के चक्कर काटते रहे आप ज़रा उनकी उम्मीदों के चक्करों को अपनी कल्पनाओं में विजुलाइज करिये .. उन सारे मौसमों के साथ ..जब वो जद्दोजहद और गरीबी में अफसरों और नेताओं के सामने बिल्कुल हाथ जोड़कर खड़े रहते थे और हर शाम खाली हाथ उदास चेहरे के साथ घर पर लौटते होंगे.. उनकी आंखें परिवार के साथ पहला संवाद क्या करती होंगी ..यही ना कि आज भी उन जिम्मेदारों से दुत्कार ही मिली है..
तस्वीरों में देखिए किस तरह दरकती हुई दीवार के साये तले लगातार 2 सालों से दुर्गा प्रसाद सकलानी अपनी दोनों बेटियों और पत्नी के साथ एक कमरे में दहशत के साए में किस तरह से जी रहे थे.. आप 1 मिनट भी इस कमरे में इसलिए नहीं बिता पाएंगे क्योंकि आपको पल-पल यही खतरा सताएगा कि न जाने इसी पल कहीं जमीन ना धस जाए और आप इन पत्थरों के मलबे में दबकर तुरंत लाश बन जाएंगे और रात में आपकी आवाज़ न किसी को सुनाई देंगी और ना ही आप कोई भी कोशिश करके इससे जिंदा बच पाएंगे ,मौत का आने वाला खौफनाक मंजर आपकी आंखों के सामने जब हमेशा तैरे तो आप किस तरह से 2 साल यहां पर गुजार सकते हैं .
प्रशासन के लगातार चक्कर लगाने के बावजूद जब आपकी नहीं सुनी जाएगी तब आपकी उम्मीदें किस तरह टूटती होंगी ये बात सुननी हो तो दुर्गा प्रसाद सकलानी की बड़ी बेटी सुनैना सकलानी से सुनिए कि पापा हर रोज अधिकारियों और नेताओं के चक्कर लगाते रहते थे और कई प्रार्थना पत्र देने के बावजूद भी उनकी सुनवाई कभी नहीं हुई आखिर हम अपने इस मकान को किस तरह से एक पल में छोड़कर चले जाएं जहां पर मेरे पापा और मम्मी ने सिर्फ इसलिए पत्थर और गिट्टियां तोड़कर मकान बनाया है ताकि जब कुछ पैसा बचेगा तो वह हमें पढ़ा पाएंगे क्योंकि मकान बनवाने में जब हम मजदूरों को पैसा दे देंगे तो हमारे पास क्या बचेगा ..
दुर्गा प्रसाद सकलानी की दोनों बच्चियां ग्रेजुएशन कर चुकी हैं और टीचर बनने का सपना पाले हुए हैं उनकी आंखों में जो आंसू है वो शायद आंखों से नहीं उनके दिल से निकल रहे हैं ..उनका यह कहना है कि अब उनकी मानसिक हालत भी इस तरह की नहीं बची है कि वह आगे कुछ भी सोच पाए ..वहीं पर सुनैना सकलानी ने बताया कि जब प्रशासन को पता चला कि मुख्यमंत्री जी आने वाले हैं तब ठीक उससे 1 दिन पहले एस डी एम मैडम ने आकर 11:00 बजे रात में उनको इस घर से निकालकर होटल में शिफ्ट किया गया और इससे पहले जब वह 2 साल तक मिन्नतें करते रहे उनकी किसी ने नहीं सुनी थी सुनैना कहती है कि हम जाएंगे तो आखिर कहां जाएंगे ये सोच भी नहीं पा रहे हैं हमारे ये बेजुबान जानवर क्या करेंगे जिनका कोई कसूर नहीं है.. जिनका दूध बेचकर हम अपनी रोजी-रोटी चलाते थे.. हमसे ना सिर्फ आशियाना छिन रहा है बल्कि हमारी यादें और सपने भी अब इस दरकते मकान के साथ टूट रहे हैं
अतुल सती चिल्लाते रहे वक्त गुजरता रहा..
जोशीमठ की पूरी कहानी को समझने के लिए आज जोशीमठ संघर्ष समिति जो कि जे पी के हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के बाद चाई गांव के घरों में दरार पड़ने और जमीनें धंसने की चिंताओं से बनी थी इस संघर्ष समिति के प्रमुख अतुल सती जो तब से लेकर आज तक इस पूरी आपदा के पीड़ितों की आवाज बने हुए हैं आज उनके घर पर चौबीसों घंटे देश विदेश के मीडिया का तांता लगा हुआ है जिन की आवाज में जोशीमठ के पहाड़ों की दर्द की कराहें और सुबकियां हैं 2009 में जब जे पी हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट की टनल से पानी रिसकर बहने लगा था बताया जाता है इस पानी रिसने की जो मात्रा थी वह 700 लीटर प्रति सेकंड की थी इसके बाद ही अतुल सती के नेतृत्व में जोशीमठ संघर्ष समिति का गठन और आंदोलन शुरू हुआ उनके इस आंदोलन को तोड़ने के लिए शासन-प्रशासन और बाद में जब एनटीपीसी ने अपना प्रोजेक्ट डाला तब भी बड़ा दबाव डाला गया कि वो किसी तरह से मान जाएं ताकि वहां पर प्रोजेक्ट जोशीमठ के निवासियों की चिंताओं को दरकिनार करके चलाया जा सके इसके लिए एनटीपीसी वालों ने उन्हें साठ लाख रुपए और मकान जैसी घूस देने की पेशकश भी की थी जिसको अतुल सती ने ठुकराते हुए लगातार आंदोलन जारी रखा।
अतुल सती ने इस संबंध में तत्कालीन राष्ट्रपति से लेकर आज तक सभी अधिकारियों और मुख्यमंत्रियों सभी को इस आपदा के बारे में चेताया था और जोशीमठ के बारे में एक विस्तृत अध्ययन करके सरकार और जिम्मेदार लोगों तक अपनी चिंताओं और मांग के कई ड्राफ्ट तैयार करके भेजे थे जिन पर किसी की नजर आज तक नहीं पड़ी और अब परिणाम सबके सामने है। अतुल शक्ति का कहना है कि अब तो हालात ऐसे हो रहे हैं कि यहां के लोगों की मानसिक स्थिति को बयां नहीं किया जा सकता वो जिस मेंटल ट्रामा से गुजर रहे हैं उसका लंबे समय तक शायद कोई इलाज ना मिल सके। मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर अतुल सती ने समय-समय पर जोशीमठ को बचाने के लिए समिति द्वारा करवाए गए सर्वे और नुकसान शासन-प्रशासन सभी को बताए थे सती का कहना है कि कि जो लोग दूर मैदानों में रह रहे हैं वह भी अब जोशीमठ में अपने परिवार की चिंता के लिए वापस आ रहे हैं खुद उनका परिवार कहता है कि जिएंगे तो साथ मरेंगे तो साथ और उनका परिवार भी उनके साथ रहने के लिए बाहर से जोशीमठ लौटकर आ रहा है।
NTPC ने जब चांदी का गिलास और कटोरे भी बांटे
जोशीमठ आंदोलनकारियों की आवाज़ को दबाने के लिए बकौल अतुल सती के कई सालों पहले कुछ स्थानीय लोगों और प्रतिनिधियों को अपनी बात मनवाने के लिए चांदी का गिलास और कटोरा भी बांटा था ताकि लोग अपना मुंह बंद रखें और एनटीपीसी का काम चलता रहे।
प्राकृतिक जल कुंड क्यों सूख गए…
जोशीमठ के के आसपास के गांवों में कई प्राकृतिक जलकुंड हुआ करते थे जो कि एनटीपीसी की टनल बनने के बाद पूरी तरह से सूख गए हैं और उनका पानी पहाड़ों में समा गया है । जोशीमठ के ठीक ऊपर 8 किलोमीटर दूर सुनील गांव में सबसे बड़ा जलकुंड सुनील जलकुंड है ये कुंड 200 मीटर लंबाऔर 50 मीटर चौड़ा है सर्दियों में इसका पानी ठंडा और जाड़ों में इसका पानी गुनगुना होता है इस कुंड के पानी की गहराई 8 फीट तक थी जो कि अब पूरी तरह से सूख चुका है .
लोगों का कहना है कि इससे ना सिर्फ सुनील गांव बल्कि आसपास के गांवों और जोशीमठ को भी पानी की सप्लाई होती थी यहां से आर्मी और पैरामिलिट्री फोर्स के लोग भी पानी ले जाया करते थे बड़े बूढ़े लोग और भूगर्भ वैज्ञानिकों की मानें तो जल कुंड का पानी सूख कर पहाड़ों में समा गया है सिर्फ सुनील कुंड ही नहीं आसपास के गांव में कई कुंड थे जिन का जल रिस करके पहाड़ों में चला गया है ये यह कारण भी आपदा का प्रतीक है क्योंकि लगातार पहाड़ों से हो रही छेड़छाड़ और हलचल से सभी कुंडों का पानी सूख गया है ।
पहाड़ों पर अनियंत्रित दबाव भी बढ़ा है
मिश्रा कमेटी के अनुसार जोशीमठ अत्यधिक भूस्खलन वाले क्षेत्र में आता है इसके साथ ही अनियंत्रित निर्माण कार्य होने से भी पहाड़ों पर दबाव बढ़ा है और लोगों का अपने गांव से निकलकर सड़क के करीब जोशीमठ में आकर बसावट करना भी इस क्षेत्र में दबाव का कारण बना क्योंकि लोग अपने पुराने पहाड़ के रहन-सहन के तौर तरीके छोड़कर मैदानों की तरह ही विलासिता पूर्ण भवन निर्माण के तौर तरीके अपनाने लगे जिससे पहाड़ की प्रकृति बिल्कुल भी मेल नहीं खाती है क्योंकि पहले पहाड़ी जनजीवन आपदा को ध्यान में रखते हुए ही अपनी दिनचर्या और आदत को अपनाता था लेकिन अब रोजगार और स्वार्थ के चलते लोग पहाड़ों और नदियों के बेहद करीब आकर बस जाते हैं, जिससे नियमों की अनदेखी और सरकारी महकमे से मिलकर भ्रष्टाचार करके एक दो मंजिल की जगह कई मंजिलें वाली इमारतें खड़ी कर देते हैं ताकि वह यात्रा मार्ग पर आने वाले यात्रियों से अपनी दुकानदारी कर सके यह भी एक सबसे बड़ा कारण है कि लोग पुरानी पहाड़ी जीवन पद्धति भूलकर रोजगार के लिए भी क्षेत्रों में दबाव डाल रहे हैं क्योंकि पहाड़ों पर रोजगार के लिए पलायन एक मजबूरी भी है।
दुल्हनें जलकुंड पर आकर करती थी पूजा
जोशीमठ भू धसाव की कवरेज के दौरान आए हुए वीडियो जर्नलिस्ट प्रेम सिंह का कहना है कि पहाड़ों की मान्यताएं और परंपराएं बेहद गहरी हैं यहां की आस्था की कई कहानियां पहाड़ी संस्कृति में रची बसी हुई है जो ना तो कभी मरी थी और ना कभी मरेंगी हालात कुछ भी हो जाए लोग यहां पर अपना विधि विधान और पूजा अर्चना नहीं छोड़ते हैं इनके धार्मिक साहित्य में प्रलय और पर्वतों के जुड़ने और टूटने की कई कहानियां हैं जो कि समय के साथ सामने भी आती रही हैं चाहे वह धारी देवी के मंदिर की बात हो या यहां पर कई पर्वतों के आपस में जुड़ जाने की भविष्यवाणी हो ऐसा लगता है कि कुदरत को पहले से ही धरती की दशा और दिशा के बारे में सब कुछ मालूम था कि किस तरह से भौगोलिक परिस्थितियां और जनता का दबाव इन क्षेत्रों पर पड़ेगा मगर मान्यताएं फिर भी नहीं टूटेंगी.. और यही कारण है कि लोगों की संपत्ति का जो नुकसान हो …
पहाड़ की रस्म रिवाज और मान्यताओं के अनुसार जब नई बहू ब्याह करके अपने ससुराल में पहली बार आती थी तब घर और गांव की खुशहाली के लिए वो इन जलकुंडों पर जा कर पूजा करके प्रार्थना करती थी। सुखते जल कुंडों के साथ जोशीमठ में ये मान्यता भी अब दम तोड़ चुकी है, लोगों को इस रस्मो रिवाज के खत्म हो जाने का सदमा है।
जब पहाड़ ने मुझको आवाज़ दी
आ जाते हैं मीडिया वाले.. जब भी मैं दरकता सिसकता हूं मेरी कराह की हर तस्वीर होती है उनके पास मगर सिस्टम तक कोई गूंज पहुंची नहीं कभी.. देखना मर जाऊंगा मैं यूं ही तुम यूं ही आते रहना…और लेना मेरी तस्वीर… सुनो तुम तो पहाड़ के हो ना.. तुम से बेहतर कौन जानता होगा मेरा दर्द.. ज़रा मेरी आवाज़ पहुंचा देना…