पहाड़ के बच्चे बोले -फूलदेई, छम्मा देई, दैंणी द्वार, भर भकार, यो देली सौ बारंबार…

प्रेम सिंह फर्स्वाण
( वरिष्ठ पत्रकार)

पहाड़ के रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रेम सिंह फर्स्वाण

उत्तराखंड का प्रमुख लोक त्यौहार फूलदेई वसंत ऋतु के आगमन पर आज मनाया जा रहा है। चैत माह की प्रथम तिथि से ही बसंत ऋतु का आगमन हो जाता है और साथ ही हिंदू नव वर्ष भी आरंभ हो जाता है।

चैत्र 1 गते को “फुलदेई” उत्तराखंड का पवित्र त्यौहार है। यह बसन्त ॠतु के आगमन पर मनाया जाता है। ऐसी भी मान्यता बताई जाती है कि जब माता पार्वती की ससुराल के लिए विदाई हो रही थी तब वे तिल-चावलों से देहली भेंट रही थी तो उनकी सहेलियों ने रुआंसे मुख से कहा पार्वती तुम तो यहां से विदा हो रही हो अब हम तुम्हें किस तरह याद करेंगे, तुम हमें अपनी कुछ निशानी यहां छोड़ दो ऐसा कहते हुए सहेलियां फफक फफक कर रोने लगीं, तब माता पार्वती प्रसन्न मुद्रा में खिलखिलाते हुए तिल-चावलों से देहली भेटने लगी तो उनकी खिलखिलाहट से वे तिल-चावल पीले-2 फूलों में परिवर्तित हो गये और उनका नाम “प्यूली के फूल” रखा गया। माता ने सहेलियों से कहा प्रिय सखियों जब भी तुम इन पीले-2 फूल देहली पर विखेरोगे इन फूलों में तुम्हें मेरा प्रतिबिंब दिखाई देगा। तभी से चैत्र मास 1 गते को “फुलदेई” का त्योहार मनाया जाता है क्योंकि उसी दिन माता पार्वती की ससुराल के लिए विदाई हुई थी ऐसी मान्यता बताई जाती है।

सभी फोटो प्रेम सिंह फर्स्वाण की फेसबुक वॉल से


लोकपर्व फूलदेई बसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है। देवभूमि के बच्चे परंपरानुसार सुबह-सवेरे ही अपने गांव, मोहल्ले के घरों में जा कर उनकी देहरियों पर रंगबिरंगे फूलों को बिखेरते हैं और गीत गाते हुए सुख समृद्धि की मंगलकामना करते हैं। फूलदेई को सीधे तौर पर प्रकृति से जोड़कर मनाया जाता है वहीं अपनी जड़ों से भी जोड़ कर रखने का त्यौहार माना जाता है।
आप सबको फूलदेई त्योहार की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ.

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