एम अली
आज विदेशों में चांद नजर आ गया है कल वहा इर्द मनाई जाएगी। हो सकता है कल भारत में भी ईद का चांद नजर आ जाए ओर परसों भारत में भी ईद मनाई जाए। हम अपनी अपनी हैसियत के मुताबिक इर्द के पर्व की तैयारिया करते हैं।मीठे पकवान अपने घरों में बनवाते हैं। अपने दोस्त अहबाब को बुला कर ओर उनके घरों को जाकर उनको बधाई ओर मुबारकबाद देते हैं।
ऐसा होता आया की चांद देखने के बाद ईद के दिन हम सभी अपनी अपनी ईदगाहों पर जा कर चार सजदों वाली दो रेकात नमाज ए शुक्राना अदा करते हैं।
कुछ अधिक तकबीरों के साथ।
अब जरा इर्द के पर्व की नमाज ओर रोजों ए भी बात कर लेते हैं।
एक मुस्लिम लगातार 30दिनों तक रोजे रखता है।
ओर रोजों की समाप्ति पर कतार बाध्य होकर एक मस्जिद में एकत्रित होता है नमाज पढ़ता है।
ओर कहता है।
ए मेरे मालिक ये जो तेरी रजा के लिए हम ने जो रोजे रखे थे हो सकता है इसमें मैने रोजे के मानक को पूरा न किया हो।
ओर मेरे रोजे फंसे हुए हो । मेरी उन सभी गलतियों को अपने महबूब के सदके में माफ फरमा ओर मेरे ये रोजे कबूल फरमा।
आस्था इस बात की है ।
पाक परवरदिगार अपने ऐसे बंदों के सभी गुनाह माफ कर देता है ओर उस व्यक्त को ऐसा बना देता है। जैसे वह आज हीं अपनी मां के कोख से पैदा हुआ हो।
इस मोकद्दस महीने को उसने अपना महीना कहा है।
दूसरा पहलू।
आगर आप की सेहत ठीक है। ओर जान बूझ कर आपने रोजे छोड़ रखे हैं ।ओर ईद की नमाज पढ़ने आप भी आते हैं तो आप वह करते है। जिसकी इस्लाम कोई इजाजत आप को नहीं है।
अगर रोजे नहीं हैं तो आप की कोई नमाज ही नहीं हैं।
ओर अगर आप ऐसा करते हैं तो फिर यह आप का अपना विषय है की आप क्या ओर क्यों चाहते हैं।
हा अगर आप बीमार हैं सेहत ठीक नहीं है। तो यह अलग विषय बन जाता है। यहाँ आप क्षमा के पात्र हैं।
लगभग रमजान गुजर चुका है।
आखिरी चरण भी समाप्ति की ओर है।
पता नहीं है की अगली साल ये रोजे किसको मिलेंगे और कौन दुनिया से जा चुका होगा।
ऐ रबबे कदीर ऐ रब्ब ए वदूद।
या हईयो या कईयूम।
हम ने तुझे बिना देखे तेरे नाम पर लगातार एक महीने तक उपवास किए। हम चोरी छिपे खाना खा सकते है। लेकिन हम ने तेरे डर से कुछ भी नहीं खाया न तो कुछ पिया।
हमारे टूटे फूटे रोजे ओर टूटी फूटी इबादते अपने महबूब के सदके में कुबूल फरमा।
हम सभी को हमारे देश को हमारे देश वासियों को रहमो करम के दायरे में रख। हम जानते है ये रोजे खतम हो जाएंगे। हम जानते है तरावीह की नमाजों से अब मस्जिदें वीरान हो जाएगी । लेकिन तेरी रहमत के नुजूल के है तलबगार हैं हम।
ओर वे लोग जो आज इस दुनिया में नहीं हैं उन पर भी उनकी अरवाहों पर अपनी रहमत नाजिल फरमा।
साभार – मोहर्रम अली जी की फेसबुक वॉल से