पितृ दोष से मुक्ति: नारायणी शिला मंदिर में श्राद्ध करने से मिलती है
श्राद्ध करने वाले को पुण्य की प्राप्ति होती है.

पितृ दोष से मुक्ति: नारायणी शिला मंदिर में श्राद्ध करने से मिलती है

पितृ दोष से मुक्ति: हमारे पूर्वज खुश रहें और हमें आशीर्वाद देते रहें अगर हमने भूल से कोई उनको दुख दिया हो तो वह हमें क्षमा करें और शायद इसीलिए पितृपक्ष के दौरान हम अपने पूर्वजों की पूजा अर्चना करके उनका सम्मान पूर्वक याद करते हैं साथ ही यदि कोई भूल हो गई हो तो उसकी क्षमा याचना करके उनका आशीर्वाद लेते हैं।

नारायणी शिला मंदिर हरिद्वार PHOTO – MBI

देश भर में पितृ पक्ष शुरू हो गए हैं. महालय के अगले 16 दिन पितरों को समर्पित रहेंगे. ऐसी मान्यता है कि पितृ पक्ष में पितरों का तर्पण करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. सामान्यतया ज्यादातर लोग घर पर ही ब्राह्मण को भोजन करवा कर पूर्वजों का श्राद्ध करते हैं. कुछ लोग तीर्थ स्‍थानों पर पितरों के लिए पिंडदान करते हैं और वहां श्राद्ध करते हैं. आज हम आपको तीन ऐसे तीर्थ स्थल बताते हैं, जहां श्रद्धा करने से पितरों को तो मोक्ष मिलता ही है, श्राद्ध करने वाले को भी पुण्य की प्राप्ति होती है.

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पितृ दोष से मुक्ति मिलती है गंगा में तर्पण करने से

श्राद्ध आस्था और श्रद्दधा का प्रतीक है. श्राद्ध पितरों को श्रद्दधा सुमन अर्पित करने का पर्व है. जो लोग पितरों का श्राद्ध करते हैं, उन्हें सभी सुख और भोग प्राप्त होते हैं. सनातन धर्म में ये मान्यता है कि मृत्यु के बाद उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है और वे पितृ दोष से भी मुक्त हो जाते हैं. वैसे भी श्राद्ध पक्ष में श्राद्ध कर्म करने का हरिद्वार, गया और बदरीनाथ में विशेष महत्व माना जाता है. इसमें भी हरिद्वार में गंगा किनारे श्राद्ध कर्म का विशेष महत्व माना जाता है. पुराणों की मान्यता के अनुसार बदरीनाथ धाम से गयासुर नामक राक्षस अपनी मुक्ति के लिए शिला का हरण करके ले जा रहा था.

नारायणी शिला मंदिर प्रथम पितृपक्ष दिवस PHOTO – MBI

नारायण भगवान के साथ युद्ध में शिला खंडित हो जाती है. इस शिला का नाभि का हिस्सा हरिद्वार में, सिर वाला हिस्सा बदरीनाथ में और निचला हिस्सा गया में गिरा था. हरिद्वार में जिस स्थान पर यह शिला का भाग गिरा था, उस स्थान को नारायणी शिला मंदिर के रूप में जाना जाता है. शिला के नीचे दबकर गयासुर की भी मौत हो गयी थी. तब भगवान ने आशीर्वाद दिया था कि जो कोई भी इन तीनों स्थान पर अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध कर्म करेगा तो उसे मुक्ति की प्राप्ति होगी.

मोक्ष की शिला नारायणी शिला PHOTO – MBI

नारायणी शिला मंदिर इस कार्य के लिए विशेष है, क्योंकि यहां पितरों की अधोगति से भी मुक्ति हो जाती है. किसी का पितृ क्षुद्र गति में है, पशु पक्षी बन गया है अथवा किसी प्रकार से कोई और अधोगति हो सकती है. वायु रूप है, प्रेत योनि में गया हुआ है तो नारायणी शिला मंदिर में श्राद्ध करने से वह पितृ योनी में में चला जाएगा. गया और बदरीकाश्रम आदि के फल भी उसको प्राप्त हो सकते हैं. तीन खंड में यह नारायण की शिला है. बदरीकाश्रम में भगवान नारायण का कपाल है, कंठ से लेकर नाभि तक का हिस्सा नारायणी शिला हरिद्वार में और चरण गया में जो विष्णुपद मंदिर कहलाता है.

हरिद्वार के विषय में नारायणी शिला के विषय में स्पष्ट वर्णित है, पुराणोक्त है कि हरिद्वारे पश्चिमीदिग भागे शिला, हरिद्वार के पश्चिम दिशा में नारायणी नाम की जो शिला है, उसके दर्शन मात्र से पाप नष्ट हो जाते हैं. यस्तत्र कुरुक्षेत्र श्रद्धाम, जो व्यक्ति यहां अपने पितरों के निमित्त श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध करता है, वह अपने 100 पुत्र कुल, पिता और बाबा आदि और 100 मातृ कुल, नाना और नानी आदि के साथ स्वयं का मोक्ष कर लेता है. इसमें कोई संशय नहीं. यहां आकर अपने पितरों के निमित्त नारायण बलि, पिंड दान, तर्पण आदि करें और पितृ दोष से मुक्ति पाएं. यह 16 दिन का महालय पक्ष विशेष अनुग्रह देने वाला है जो लोग पूरे वर्ष अपने पितरों के निमित्त कुछ नहीं कर पाए इन 16 दिनों में अपने पितरों के निमित्त करें.

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पुराणों में कहा गया है कि जब श्राद्ध पक्ष शुरू होते हैं, तब इस ग्रह योग में पितृलोक पृथ्वी के सबसे करीब होता है. इसीलिए पृथ्वी के सबसे निकट होने के कारण पितृ हमारे घर पहुंच जाते हैं. संसार में आया हुआ जो मानव वैदिक परंपरा से अपने पितरों को पिंड दान, तिलांजलि और ब्राह्मण को भोजन करवाते हैं, उनको इस जीवन में सभी सांसारिक सुख प्राप्त होते हैं. माना जाता है कि अंगूठे में पितरों का वास होता है. इसीलिए तर्पण आदि कर्म करते वक्त अंगूठे से ही पिंड पर जलांजलि दी जाती है.