(प्रभात उत्प्रेती जी की फेसबुक वाॅल से)
बहुत प्यारे प्रेमी हैं हमारे हेम पंत। इतना प्यार अंदर इस डिजिटल जिंदगी में जहां प्यार भी डिजिटल हो गया है, यह कायम रहना, उससे ओतपोत किसी का होना इस संसार के लिए एक उपलब्धि है।
कल मुझे समय साक्ष्य देहरादून से निकली पुस्तक घुघूती बासूति’ दे गये। कवर पेज ही आपको वह रंग दे देता है कि कोई भी डिटरजेन्ट चाहे उसका विज्ञापन महानायक भी करे उसे धो नहीं सकता। उसमें वह सब बाल गीत हैं जिनको सुन सुन कर हम पले हैं।
बाल गीत के कारण मुझे अपने दादा याद हैं। मेरी तीन साल की उम्र में वह सुनाते थे । मुझे भी अचंभा है कैसे याद रहे।
वाह वाह साहब जी क्या ख्याल तुम्हारा जी….।
पतंग लेके बाज उड़ाये कव्वा तीर चलाये
जब मुर्गी ने बाग को पकड़ा उसको कौन बचाये
वाह वाह साहब जी क्या ख्याल तुम्हारा जी।
क्या व्यग्य है, जो आज भी कायम है
बाल गीत जो लोक से निकलते हैं यही उनकी तासीर है।
पुस्तक में बाल गीतों की क्या लय है! क्या मनोविज्ञान है कि उसे पढ़ कर आज भी नींद आ जाती है कैसे कैसे ख्वाब दुलार के आ जाते हैं। उनमें लय है, माता पिता से उपर दादा दादी नाना नानी सबका भरपूरा परिवार है,खेल है, इस रंगीली छबीली दुनिया का दीदार है। यथा
आरे चड़ी तेरे काटेंगे कान तूने चुराये मेरे लल्ला के धान।
गीतों में एक ध्वन्यात्मक लगे सुर हैं, इफैक्ट है जो लोक के फ्लेवर से निकले गीतों का अंदाज है। काले कव्वा,फूलदेई छममा, मौसम गीत….
और ज्यादे न कहुंगा क्योंकि पोस्ट लम्बी हो जायेगी तो बिना पढ़े लाइक का जुल्म भी बरस सकता है। आप सबने खरीद कर उसे पढ़ना भी है।
और इस पुस्तक को निहार कर एक सकूँ और भी बरसता है बालकों के बनाए मासूम चित्र जिसे हर आदम अपने बचपन अपने अंदर की कल्पना से बनाता है और उनका शौष्ठव, रेखाएं एक कल्पना कर सकने वाली चेतना का कमाल होता है।
पढ़ गुण के आनंद मिला ।
बस इतना ही