मनीष चंद्रा
मांग पे सजा हिन्दोस्ताँ के टीका
कुदरत की बाँहों में फैला बागीचा
सम्बल जिसके जोश में ,बड़ा प्रचंड प्रबल
क्रांति कांति धवल ,बनता बिखरता फिर सवंरता
आज कल हर पल निर्मल है
शान से खड़े रहने की गरिमा
तीर्थों की इतनी पुरातन महिमा
सबको समेटे पहाड़ों की छाती
गोद में जिसकी नदियां किलकिलाती
देवधरा का अद्भुत वैभव
शब्द यहीं से उपजे पावन और मनोरम
देश का ज़ेवर ,भारत की धरोहर
रास रंग और कुम्भ कि उमंग है
उत्तराखण्ड अनन्त है
कितना सुन्दर अतीत है
उत्तराखण्ड एक खूबसूरत गीत है
………. आकर महसूस तो करें
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