आपदाओं पर मंथन:बारिश के सीजन को देखते हुए उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण पूरी तरह एलर्ट हो गया है ,जिसको देखते हुए यूएसडीएमए की ओर से सभी केंद्रीय अनुसंधान संस्थानों के साथ तैयारियों के संबंध में विशेष बैठक का आयोजन किया गया। बैठक में विभिन्न प्रकार की आपदाओं को लेकर होने वाले नुकसान का आकलन, न्यूनीकरण, राहत और बचाव कार्यों को लेकर चर्चा की गई।
बैठक की अध्यक्षता करते हुए सचिव आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास डॉ. रंजीत कुमार सिन्हा ने कहा कि उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाएं हर साल कई चुनौतियां लेकर आती हैं। मानसून के दौरान बाढ़ और भूस्खलन से काफी जान-माल का नुकसान होता है। उन्होंने कहा कि आपदा प्रबंधन एक विभाग का कार्य नहीं है बल्कि कई विभागों के आपसी सामंजस्य और तालमेल से आपदा की चुनौतियों से निपटा जा सकता है। विभिन्न अनुसंधान संस्थानों की रिसर्च आपदा से प्रभावी तरीके से निपटने में एक दिशा प्रदान कर सकती हैं।
भूस्खलन और अन्य आपदाओं पर मंथन
भूस्खलन के साथ ही अन्य आपदाओं से निपटने के लिए विभिन्न संस्थानों द्वारा किए जा रहे कार्यों अनुभवों और उनके द्वारा प्रयोग की जा रही तकनीकियों के बारे में डॉ. रंजीत कुमार सिन्हा ने जानकारी लेते हुए बड़ी बारीकी से चर्चा करी।सचिव डॉ. सिन्हा ने जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के साथ ही वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों से पूर्वानुमान को लेकर एक मॉडल विकसित करने को कहा, जिससे यह पता लग सके कि कितनी बारिश होने पर भूस्खलन की संभावना हो सकती है। उन्होंने कहा कि आपदाओं के प्रभावों को कम करने के लिए प्रभाव आधारित पूर्वानुमान बेहद जरूरी हैं।
आईआईटी रुड़की प्रोजेक्ट होगा का सत्यापन
सचिव डॉ. सिन्हा ने मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंस के नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी को आईआईटी रुड़की द्वारा विकसित भूकंप पूर्व चेतावनी प्रणाली का सत्यापन करने को कहा। उन्होंने इस प्रोजेक्ट से जुड़े डाटा को एमईएस को भेजने के निर्देश दिए। जिससे यह पता लग सके कि यह कितना कारगर है।
फ्लड मैनेजमेंट प्लान बनाने के निर्देश
सचिव डॉ. सिन्हा ने कहा कि इनसार तकनीक आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में व्यापक बदलाव ला सकती है। उन्होंने एनजीआरआई के वैज्ञानिकों से इस पर उत्तराखंड के दृष्टिकोण से कार्य करने को कहा। उन्होंने एनआईएच रुड़की के वैज्ञानिकों को फ्लड प्लेन जोनिंग की रिपोर्ट और डाटा के इस्तेमाल कर उत्तराखंड के लिए फ्लड मैनेजमेंट प्लान बनाने के निर्देश दिए।नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी के निदेशक डॉ. ओपी मिश्रा ने बताया कि रियल टाइम लैंडस्लाइड अर्ली वार्निंग सिस्टम पर अमृता विश्वविद्यालय ने कार्य किया है और उनके रिसर्च का लाभ उत्तराखंड में भूस्खलन की रोकथाम में उठाया जा सकता है।अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी (प्रशासन) आनंद स्वरूप, अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी (क्रियान्वयन) राजकुमार नेगी, संयुक्त मुख्य कार्यकारी अधिकारी मो0 ओबैदुल्लाह अंसारी, यूएलएमएमसी के निदेशक शांतनु सरकार, मौसम केंद्र के निदेशक डॉ. विक्रम सिंह, डीडी डालाकोटी, मनीष भगत, तंद्रीला सरकार, रोहित कुमार, डॉ. पूजा राणा, वेदिका पंत, हेमंत बिष्ट, जेसिका टेरोन सहित केंद्रीय जल आयोग, मौसम विज्ञान केंद्र, राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र, वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोर्ट सेंसिंग, राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान, सीबीआरआई रुड़की, एनजीआरआई हैदराबाद, भारतीय भूगर्भीय सर्वेक्षण संस्थान कोलकाता तथा देहरादून आदि संस्थानों के प्रतिनिधि शामिल हुए।