मनीष चंद्रा
नशा मुक्त समाज की परिकल्पना को तोड़ने का प्रयास सदियों से जारी है। न जाने कब और कैसे भगवान शंकर के साथ भांग के सेवन की बात जोड़ दी गई है, झूठ बात:भगवान शंकर का प्रसाद भांग — ज़रा सोच कर देखिए जो संपूर्ण चर अचर जगत का स्वामी है वह नशे का दास कैसे हो सकता है , जो हमारा पिता है जो हमें पालता है वह नशे का आदि कैसे हो सकता है.झूठी बात भगवान शंकर की और भांग की, नशा करने वाला व्यक्ति कभी भी चिंतनशील पालनहार और जिम्मेदार नहीं हो सकता है जो सृष्टि का पालनहार है वह इतना गैर जिम्मेदार कैसे हो सकता है। दुनिया के चिंतन की तल्लीनता ने ही उन्हें इतना उदार और करुणा का सागर बनाया तभी उनका नाम भोले कहलाया.. उनके उस भोलेपन पर ही न जाने कब लोगों ने अपनी मदहोशी की इच्छापूर्ति के लिए भगवान शंकर के नाम का सहारा लिया ताकि उनको सहूलियत हो सके नशे को आदर्श रूप से महिमा मंडित करने के लिए पाखंड का यह स्वांग रचा गया, तभी तो आदि शंकराचार्य जी द्वारा निर्वाणष्टकम की ये कुछ पंक्तियों से पता चलता है
न पुण्यम न पापम न सौख्यं न दुहखाम
न मंत्रो तीर्थं न वेद न यज्ञः
अहम भोजनम नैव भोज्यम न भोक्ता
चिदानंद रूपः शिवो’हम शिवो’हम
कोई पुण्य या दोष नहीं, कोई सुख या दुख नहीं,
मुझे न मंत्र चाहिए, न तीर्थ, न शास्त्र, न कर्म,
मैं न तो अनुभवी हूँ, न अनुभव ही,
मैं चेतना और आनंद का रूप हूं, मैं शाश्वत शिव हूँ..
शिव की ज्ञान और ध्यान की शांत भंगिमा को भांग से जोड़कर नशे को आदर्श रूप में स्थापित करने की कोशिश की जाती रही है।
शिव के ध्यान में जो भोलापन है उसी से वह भोले कहलाए यद्यपि हमें यह भी पता है कि जब उन्होंने रौद्र रूप धरा तो तांडव मच गया प्रलय आ गई थी. False thing Lord Shankar’s and bhang
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धर्म ग्रंथो में नहीं मिलता है भगवान शंकर के नशे के सेवन का प्रमाण
धर्म ग्रंथो में नहीं मिलता है भगवान शंकर के नशा करने के प्रमाण,भगवान शंकर का प्रसाद भांग..झूठ बात:भगवान शंकर का प्रसाद भांग लोगों ने अपने स्वार्थ सिद्धि और मौज के नाम पर भगवान शंकर का सहारा लेकर नशे को मान्यता प्रदान करने का प्रयत्न किया है।
समुद्र मंथन से जब विष निकला
समुद्र मंथन से जब विष निकला तब दुनिया को उस ज़हर के प्रभाव से बचाने के लिए महादेव ने उस ज़हर को स्वयं पी लिया था जिसको कि उन्होंने अपने गले में रोक लिया और तभी से उनका गला नीला पड़ गया साथ ही उनको नीलकंठ भी पुकारा गया।
फिर भांग और धतूरा चढ़ाते क्यों हैं
मान्यता के अनुसार जब समुद्र मंथन से विष निकला तब सभी प्रकार की वनस्पतियां और जीव जंतु विषैले हो गए थे जिसमें की भांग धतूरा सांप और बिच्छू इत्यादि हैं जिसको की कोई आम मनुष्य धारण नहीं कर सकता है इनको केवल भगवान शंकर ही अपने पास रख सकते हैं ताकि इसका प्रभाव किसी और के जीवन को विषैला ना कर दे शायद इसीलिए भगवान शंकर को इन सब को अर्पण करने की प्रथा चल उठी लेकिन नशे के उपासकों ने अपनी मौज मस्ती के लिए भांग चरस गांजा और दारु को भगवान के प्रसाद की व्याख्या करने का कुचक्र रचा है।
हनुमान चालीसा की चौपाई पर ध्यान दीजिए
“जो यह पढ़े हनुमान चालीसा होय सिद्धि साखी गौरीशा”
मतलब स्पष्ट है कि जो हनुमान चालीसा पढ़ता है उसको सिद्धी मिलती है और जिसकी गारंटी मां गौरी लेती हैं तो फिर समझिए कि हनुमान भगवान शंकर के अवतार बताए गए हैं और बजरंग बली से सात्विक कौन हैं कौन कैसे मान सकता है कि शिव नशे को मान्यता प्रदान करते हैं ।
साभार
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