काश नारी शोषण की खबरें न दिखें न छपें- रीना त्रिपाठी

अगर अगर देखा जाए तो ब्रह्मांड का ऐसा कोई कोना नहीं ऐसी कोई वस्तु नहीं और ऐसा कोई शरीर नहीं जिसकी रक्षा मां भगवती अपने विभिन्न रूपों में नहीं करती।
प्राचीन काल से ही मार्कंडेय पुराण में वर्णित दुर्गा सप्तशती के देवी कवचम का जो महत्व रहा है उसे नकारा नहीं जा सकता नियमित पाठ करने मात्र से आपके अंदर महान ऊर्जा का संचार होता है।
यानी इस बात को नकारा नहीं जा सकता है कि संपूर्ण ब्रह्मांड की रचना में यदि ऊर्जा का स्रोत अनंत अविनाशीओंकार के नाद, शिव का योगदान है तो सभी की रक्षा के लिए माता ने शक्ति के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।
दुर्गा सप्तशती का पाठ हम सभी भारतीय नवरात्रि में वर्ष में दो बार तो करते ही हैं तथा कुछ हृदय ग्राही व्यक्तित्व रोज ही इसके आशीष से सुरक्षित रहते हैं।

     भारतीय समाज की संरचना कि यदि बात की जाए तो नवरात्रि में नव दुर्गा की पूजा करने वाले हम, देवी के देवी कवचम के पाठ करने वाले हम और भारतीय राजनीति में स्त्रियों के महत्व और सम्मान को परखने वाले आदरणीय महाराज जी मिशन शक्ति के रूप में महिलाओं की सुरक्षा सम्मान और समानता के लिए सामाजिक लाभ की योजनाएं बनाकर महिलाओं को बराबरी और सम्मान का हक दिलाने के लिए हमेशा प्रयासरत रहते हैं। योजनाओं के रूप में भी महिलाओं का महत्व बढ़ा है आप ध्यान दें... प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना में गैस चूल्हा और सिलेंडर महिला के नाम होगा, सुरक्षित मातृत्व के लिए सुमन योजना, सुकन्या समृद्धि से बेटियों की सुरक्षा,महिला व्यापारियों को प्रोत्साहित करने और उनके बिज़नेस को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से, सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय, भारत सरकार ने एक स्ट्रेटजी पॉलिसी - महिला समृद्धि योजना अभी चार दिन पहले हीलागू की है। मुद्रा योजना में बैंक के खाते हैं महिलाओं के नाम खुल रहे हैं शहरी और ग्रामीण इलाकों में आवास महिलाओं के नाम आवंटित किए जा रहे हैं, यानी हमारी केंद्र और राज्य सरकार यही चाहती है कि महिलाओं को सम्मान मिले महिलाओं को समानता बराबरी और सिर गर्व से उठाकर चलने का स्वाभिमान मिले।

     वास्तव में दुख का अनुभव तब होता है जब  समाज में हमारे अखबारों में आए दिन महिलाओं की असुरक्षा ,अपमान और उन्हें दोयम दर्जे का समझे जाने का समाचार प्रकाशित होता है। मेरे मन में प्रश्न उठता है शायद आपकी भी उठता होगा की.... क्या समाज की मानसिकता देवी कवच पढ़ने के बाद भी बदली नहीं जा सकती?

क्या समाज के प्रत्येक कोने में सृष्टि के प्रत्येक निर्माण में और पुरुष के कंधे से कंधा मिलाने और सृजन की प्रक्रिया में महिला की भूमिका को नकारा जा सकता है? यदि नहीं तो क्यों समाज में तुच्छ मानसिकता के लोग नारी को खुद से छोटा, अपने पैरों की धूल या फिर नकारे जाने के योग्य ही और दोयम दर्जे की भूमिका में ही समझते रहेंगे।
आप गौर करें फिर वह भारतीय राजनीति हो शिक्षक कर्मचारियों और अधिकारियों के लिए हक और अधिकार के लिए लड़ने वाले संगठनों की बात करते है तो वहां महिलाओं की भूमिका लगभग शून्य है। यह दर्शाता है कि महिलाएं आज भी उपेक्षा की शिकार है। जो गिनी चुनी महिलाएं उच्च पदों पर आसीन हुई है उनके लिए भी शायद पुरुषों द्वारा अक्सर सम्मान के शब्द नहीं सेटिंग और व्यभिचार से वहां तक पहुंचने जैसे शब्द आपको अक्सर सुनने को मिल जाएंगे ।जबकि इसमें सच्चाई नाम मात्र की नहीं होती। महिला को आगे बढ़ते ना देखने की भावना की होती है। यह उनकी योग्यता और मेहनत का प्रतिफल ही है पर शायद इस प्रकार के अफवाहें पुरुषवादी हीन भावना के प्रत्युत्तर और कुतर्क मात्र ही हैं।
21वीं शताब्दी के चरम पर पहुंचे हम विकास की दौड़ में समुद्र की गहराइयों से लेकर आकाश की ऊंचाइयों को गिनने में सक्षम है अपना परचम फैलाने में किसी भी क्षेत्र में महिला आज पीछे नहीं है।
भारतीय परिवेश की बात की जाए तो यहां भी महिलाओं ने हर उस क्षेत्र को अपना प्रतिनिधित्व दिया है अपनी मेहनत का लोहा मनवाया है अपनी काबिलियत का सिक्का जमाया है।
आज समाज में कार्य करने वाले विभिन्न संगठनों में महिलाओं की भागीदारी नकारात्मक होने का क्या कारण है यह उन पुरुषवादी मानसिकता के लोगों को समझना चाहिए जिन्होंने संगठन तो बना दिए पर महिलाओं को सम्मान, महिलाओं की गरिमा की रक्षा और महिलाओं की सुरक्षा के लिए कोई नियम नहीं बनाया। उन्हें आज भी अपने कार्यक्रम ,अपने संगठन में आने वाली महिलाएं फूटी आंख नहीं भाती और यदि कहीं पद में उन से ऊपर निकल गई तब तो चारित्रिक छींटाकशी का क्रम शुरू होता है।
मुखर होकर विरोध दर्ज कराने वाली और अपने हक और अधिकार के लिए बोलने वाली महिला प्रतिनिधियों को या तो संगठन से निकाल दिया जाता है या तेज होने का अपमान सेयुक्त आरोप के सिवा कुछ नहीं मिलता।
शायद ही कोई संगठन हो जहां महिलाओं की उपस्थिति सम्मान मान मर्यादा गरिमा और समानता के साथ मिला हो यदि ऐसे संगठन आपकी जानकारी में है तो निश्चित रूप से साधुवाद के पात्र हैं।
आज के समय में इस बात पर ध्यान देना होगा कि यदि कोई प्राधिकारी यदि कोई संगठन में कार्य करने वाला व्यक्ति यदि कोई समाज में अपनी भूमिका के साथ किसी भी महिला महिला पदाधिकारी महिला कर्मचारी का अपमान करता है तो हम सभी को मिलकर उसका बहिष्कार करना चाहिए यदि शब्दों के द्वारा महिलाओं के मान मर्दन की बात करता है तो हमें उसके अधिकारियों को छीन लेना चाहिए। आज आवश्यकता है कि हम मिलकर समाज में पाए जाने वाले दूषित मानसिकता के लोगों को किनारे करें उनका सार्वजनिक बहिष्कार करें ताकि अपनी कुंठित मानसिकता से वह आधी आबादी का अपमान न कर सके और रोज सुबह उठकर पेपरों में हमें महिला संबंधी अपराधों की सूची को कम करने में सहायता मिल सके।

  यदि एक पुरुष के संपूर्ण जीवन संपूर्ण अंग और प्रत्यंग की बात की जाए तो माता के विभिन्न रूपों  में एक स्त्री ही है जो पुरुष की रक्षा करती है फिर वह बेटी हो, मां हो, बहन हो, पत्नी हो यह जीवन में मिलने वाले किसी भी रिश्ते के रूप में हो तीमारदारी से लेकर पालन हो पोषण और संरक्षण यह सभी महिला के द्वारा ही किया जाता है। 
      यदि कुछ गिने चुने पुरुष जिनमें अहंकार ज्यादा है तो इस अहंकार को जन्म देने वाली भी एक महिला ही है। महिला ने ही समाज में पुरुष और महिला बनाने का क्रम जारी रखा है। 
     वाकई दुख होता है आधुनिकता समानता और महिला सशक्तिकरण की बात करने वाले हम, जब किसी कार्यक्रम में किसी महिला का अपमान किसी पुरुष द्वारा किया जाता है वाकई दुख होता है ।

और बिल्कुल वैसा ही अनुभव होता है जैसे महाभारत काल में जब पुरुषवादी मानसिकता के लोग भरी सभा में द्रोपदी का चीर हरण होते देखते हैं … आज भी इन आयोजनों में उपस्थित पुरुष और महिलाएं मूकदर्शक बने बैठे रहते हैं।
वाकई दुख होता है जब सत्ता के गलियारे में बैठी हुई 2–4 महिलाएं अन्य महिलाओं के आने के लिए प्रस्तुत विशेष बिल के लिए कभी धरना और प्रदर्शन तो दूर की बात है बात भी नहीं करती।
आइए हम सब मिलकर कुछ ऐसा सोचे की आधी आबादी का नेतृत्व करने वाली, पूरी आबादी को सृजित करने वाली ब्रह्मांड सहित सभी की रक्षा करने वाली सुरक्षा और जीवन देने वाली मात शक्तियों का सम्मान हो सके।
कभी उन्हें दोयम दर्जे के व्यवहार से ग्रसित ना होना पड़े। क्या कुछ ऐसी नीतियां नहीं बन सकती समाज में कि हमें रोज उठकर सुबह अखबारों में महिलाओं के खिलाफ होने वाली अप्रिय घटना को ना पढ़ना पड़े। महिलाओं को रोज रोज अपने हक अधिकार और सम्मान के लिए ना लड़ना पड़े।
विचार करें।
@रीना त्रिपाठी