यूं ही नहीं मिला मुझे राष्ट्रपति के हाथों राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार

आसिया फारुकी
राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार (2023) सम्मानित

फिर भी नहीं टूटते.. हमारे हौसलें

मैं आसिया फारूकी ( राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित शिक्षिका ) अपने इस सफ़र की कहानी कर रही हूं आप सब से साझा.. जब मैने बिना डरे मुस्तकिल मिज़ाजी के साथ काम किया और आज ये मुक़ाम हासिल हुआ। ये मुकाम सिर्फ मेरा नहीं है ये एक तैयारी है हजारों और लाखों नयी आसियाओं की … मेरा ये कदम उस सपने की प्रेरणा की चिंगारी है जब हर एक लड़की महिला औरत अपना मुकाम तलाश कर आगे बढ़ती है तो उसके हौसले को तोड़ने के लिए हमारे इसी समाज से उछाले जाते हैं तानें.. रोके जाते हैं रास्ते.. मगर फिर भी नहीं टूटते हैं हमारे हौंसले

यूं ही नहीं होती हाथों में उंगलियां, ईश्वर ने किस्मत से पहले मेहनत को रखा है” अच्छे कर्मों का फल जरुर मिलता है। संकल्प से सपने साकार होते हैं और सपने जब समाज, प्रकृति संरक्षण और धरती-अम्बर की निर्मलता से जुड़े हों तो उनमें स्वत: अनंत ऊर्जा बहने लगती है।‌ सकारात्मक जीवन दृष्टि सर्वदा कुछ नया रचती, बुनती और गुनती रहती है।‌ क्योंकि यह ऊर्जा है बेहतर भविष्य के निर्माण की, मानव मूल्यों को बचाते रखते हुए स्वस्थ देश समाज रचने की।

और ऊंची हो गई हौसले की उड़ान मेरी (जब राष्ट्रपति ने अपने हाथों से सौपा मुझे पुरस्कार)

मैं आपको अपनी उस कहानी से जोड़ती हूं जब मैंने बिना डरे बिना रुके विद्यालय में अड्डा जमाए अराजक तत्वों का मुकाबला किया जो नहीं चाहते थे कि विद्यालय से सीख और समझ कि उजाला समाज में फैले। जिनके द्वारा मुझे कदम-कदम पर बहुत परेशान किया गया। कभी मेरी गाड़ी के शीशे फोड़ते, कभी स्कूटी की हवा निकालते, ईंट-पत्थर भी चलाते, शराब की बोतलें विद्यालय में डाल जाते, धमकी भरे फोन करके मुझे डरा रास्ते से हटाना चाहते।‌ पर मैने भी ठान लिया था कि विद्यालय को अराजक तत्वों का अड्डा नहीं शिक्षा का मंदिर बनाऊंगी। बच्चों की मुस्कुराहट से विद्यालय का कोना-कोना भर दूंगी। खुशियों के सैकड़ों सूरज उगा दूंगी। मैने हार नहीं मानी,

हम लिखेंगे नई कहानी

विद्यालय में जमा 21 ट्राली कचरे के ढेर को साफ करने में 6 माह तक जुटी रही। तन, मन धन से विद्यालय को सजाया-संवारा। अभिभावक संपर्क करती, महिला अभिभावकों से अंगूठा न लगवा सबको हस्ताक्षर करना सिखाया, लोग मेरे सपनों से जुड़ रंग भरते रहे। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, नशा मुक्ति, बाल श्रम अपराध पर एक मुहिम चला दी। विद्यालय का नामांकन बढ़ाने के लिए मलिन बस्तियों में घूमती रही। महिलाओं को सशक्त बनाने का प्रयास करने लगी। बालिकाओं को सेल्फ डिफेंस से संबंधित कार्यक्रम चलाकर मजबूत बनाती। समाज में बदलाव लाने का प्रयास करती।

मजबूत हैं ईंटे नींव की..

मेरे एकल ऊर्जा के प्रवाह में सैंकड़ों धाराएं मिलने लगीं। कभी कूड़ाघर बन चुके बंजर विद्यालय ने अंगड़ाई ली, आमजन के सहयोग से प्रांगण में फूल मुस्कानें लगे, विद्यालय धीरे-धीरे फर्श से अर्श पर आने लगा। अकेली इस मुहिम को शुरू किया और आज कारवां बन गया। मानवीय मूल्यों जैसे दया, उदारता, करुणा, न्याय, विश्वास, आत्मीयता आदि पर बल देते हुए बच्चों को अच्छे संस्कार देने लगी। अच्छे कार्यों का दायित्व जो मुझ पर था, वही बदलाव लाया और आज मैं राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से पुरस्कृत होकर शिक्षकों का रोल मॉडल बन गई हूं। सही कहते हैं यूं ही नहीं मिलता कोई मुकाम, उसे पाने के लिए चलना पड़ता है इतना आसान नहीं होता कामयाबी मिलना, इसके लिए किस्मत से लड़ना पड़ता है

आज एक साधारण सा प्राथमिक विद्यालय मॉडल प्राइमरी स्कूल में बदल चुका है।

आंधियों लाख चलो तुम मगर मैं अभी थमी नहीं रुकी नहीं