दो मई को तो हमें याद रखना ही चाहिए

प्रभात डबराल
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं आपने प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कई समूह को अपने संपादन से सुशोभित किया है

आज की दुनियाँ में हम “मई दिवस”(मज़दूर दिवस) का महत्व भले ही भूल गए हों, दो मई को तो हमे याद रखना ही चाहिए क्योंकि तेइस साल पहले आज के दिन जो हुआ था उसने हमारे जीवन में बहुत बड़ा असर डाला है.

इसी दिन यूरोप की सबसे बड़ी अनुसंधान शाला “CERN” ने अपनी खोज WWW(world wide web) को अपनी चारदीवारी से बाहर निकालकर दुनियाँ के लोगों को समर्पित किया था.

ब्रिटिश कंप्यूटर साइंटिस्ट टिम बर्नर्स ली ने 1989/90 में WWW का कोड बनाया था. उस समय वो CERN में काम कर रहे थे. उन्होंने जब इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया इसका नाम”MESH” (जाल)था बाद में इसे WWW कर दिया गया. प्रो ली आजकल ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में हैं. वो WWW के निरंतर विकास में लगे एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन के प्रमुख भी हैं.

मैंने WWW का नाम 1993/94 में सुना था जब हमारे प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव अमरीका यात्रा पर थे और अमरीका के तत्कालीन उपराष्ट्रपति अल गोर ने अपने भाषण में इसका ज़िक्र किया और कहा कि ये दुनियाँ को एक सूत्र में पिरोने का एक माध्यम बन सकता है.

आश्चर्य तो मुझे तब हुआ जब नरसिम्हा राव जी ने भी WWW के महत्व पर बोला. ध्यान में रहे कि ये वो ज़माना था जब हम लोगों ने कंप्यूटर पर काम शुरू ही किया था और हम लोग दफ़्तर में LAN और WAN लगने पर ही इतराने लगते थे.

दरअसल WWW का आविष्कार भी CERN के LAN( लोकल एरिया नेटवर्क) के रूप में ही हुआ. ये भी मुझे बाद में डैन ब्राउन के उपन्यास एंजल्स एंड डीमन्स से पता चला. उपन्यास में CERN की शोधशाला पर खूब लिखा गया है.

नरसिम्हा राव और अल गोर, दोनों पढ़े लिखे थे. अलगोर को तो नोबल पुरस्कार भी मिला. नरसिम्हा राव दोबारा प्रधानमंत्री नहीं बन सके. अल गोर भी राष्ट्रपति चुनाव में आम मतदाताओं का ज़्यादा वोट पाने के बावजूद इलेक्टोरल कालेज की गिनती में हार गए. कम पढ़े लेखों की तूती हमारे यहाँ ही नहीं, हर जगह बोलती है.

लेकिन पढ़े लेखों का ज़रा सा भी योगदान युगांतरकारी होता है.बाक़ी तो बस आवत हैं और जावत हैं..

फ़ोटो में अपन CERN के सामने खड़े हैं.

साभार – वरिष्ठ पत्रकार प्रभात डबराल की फेसबुक वॉल से