प्रकृति की पूजा डॉ आरती..

Manish Chandra

यूं ही नहीं बन जाता है कोई प्रकृति की आरती इस मंसूबे के पीछे चलना पड़ता है सूरज की धूप में ..बातें करनी पड़ती है मौसमों से.. और इकट्ठा करना पड़ता है लोगों का विश्वास…

तभी तो मन्ना डे ने क्या खूबसूरत लाइने गायी हैं…

अपने लिए जिए तो क्या जिए तू जी ए दिल ज़माने के लिए

ऐशो आराम की ज़िंदगी छोड़कर समाज के लिए खुद को समर्पित कर देना बहुत कम ही लोग ऐसे हैं जो ऊंचे घरानों से ताल्लुक रखते हों और एक बड़ी प्रतिष्ठित नौकरी छोड़कर गांव जंगल और जमीन से जुड़कर लोगों को हरियाली से खुशहाली का पाठ पढ़ाने में अपना जीवन लगा दें– जैसे कृष्ण भक्त में मीरा रमी थीं.. जैसे शबरी राम की प्रतीक्षा में जंगल में रुकी थीं… बस होनी चाहिए मन में एक आस जो खुद को पहचान कर दुनिया को भी अपने रास्ते पर स्नेह से लेकर चलते हुए कारवां बना सके , ऐसे ही एक बेहद आम व साधारण सी नज़र आने वाली शख्सियत छत्तीसगढ़ की डॉक्टर आरती साठे .. आज पूरे देश के लिए बेहद खास किरदार बनकर उभरी हैं ।डॉ आरती ने केवल 10-11 सालों की मेहनत से छत्तीसगढ़ के साथ ही इस देश के कई हिस्सों के किसानों और नागरिकों के जीवन में प्रकृति और पर्यावरण के प्रति जिस नव चेतना का संचार किया है उसकी तारीफ मीडिया से लेकर सरकार तक कर रही है।

सबसे पहले डॉक्टर आरती साठे ने स्वयं रसायन मुक्त शाक, सब्जी, भाजी और अनाज उत्पादन के प्रति अपने किचन गार्डन में मेहनत करनी शुरू की इसके बाद उन्होंने अपने इस जीवनदाई शोध को घर-घर तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया.. बकौल आरती साठे के आज के व्यापारिक युग में बाजार में मिलने वाली सब्जियां और अनाज पेस्टिसाइड के प्रयोग से उत्पादित कर हमारी थालियों में आते हैं जिसे हमारे नन्हें नन्हें बच्चे खाकर गंभीर बीमारियों से ग्रस्त हो रहे हैं हम जानबूझकर खुद ही उनको ज़हर खिला रहे हैं अगर हम खुद ही नेचुरल फार्मिंग की थोड़ी बहुत जानकारी प्राप्त कर लें तो स्वयं अपने घर की क्यारियों या टेरिस गार्डन में खाने लायक सब्जियां घर में ही उगाकर ज़हर खाने से बच सकते हैं और साथ ही हमारे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार हरियाली के रास्ते आकर हमें खुशहाली दे सकता है।

डॉ आरती के पिता क्लास वन ऑफिसर थे बचपन अनुशासन में बीत रहा था वह गमलों में पौधों को पानी देते देते कब उनकी भाषा सीख गई यह उन्हें तब पता चला जब वह एमबीबीएस डॉक्टर बनने के बाद आईएएस बनने की राह पर निकली मगर हुआ वही जो प्रकृति ने चाहा इंटरव्यू के बाद की निराशा ने उन्हें अब उन्हें अदभुत बना दिया था, पर्यावरण के करीब ला दिया था इस बीच उन्होंने क्लास वन की नौकरी भी छोड़ दी मेडिकल की नौकरी और प्रैक्टिस के साथ वह नेचुरल फार्मिंग के जरिए अपने मन की हरियाली की तलाश में लगी कुछ सालों तक आर्ट ऑफ लिविंग और गुरु श्री श्री रविशंकर से जुड़कर गांव गांव लोगों से मिलती रहे फिर कुछ सालों बाद अपनी मेहनत पर स्वयं लोगों को नेचुरल फार्मिंग की ट्रेनिंग देने लगी आज आरती के पास 10000 से ज्यादा सफल नेचुरल फार्मरों का कुनबा है जो फार्म से लेकर मार्केट तक डायरेक्ट अपनी फसलों को बगैर पेस्टिसाइड के उपयोग से जनता तक पहुंचा रहे हैं ।वह सरकार के साथ एग्रीकल्चर वन विभाग जैसे तमाम विभागों के साथ जोड़कर आदिवासी किसानों महिला समूह स्कूल कॉलेजों में लोगों को नेचुरल फार्मिंग के प्रति ट्रेंड कर रही हैं, आरती अब तक सैकड़ों कार्यशाला का आयोजन देश भर में कर चुकी हैं, स्थानीय तौर पर पाए जाने वाले कई संसाधनों से वह उत्पाद तैयार करवाती हैं जिसमें सबसे प्रमुख बांस के उत्पाद हैं जिनसे वह कई डिजाइनर सामान बनवा कर बाजार में बिकवा रही हैं जिस कारण छत्तीसगढ़ के आदिवासी किसान बड़ी संख्या में लाभान्वित हो रहे हैं।

बॉस पर शोधकार्य

डॉक्टर आरती का बाॅसों की प्रजातियों और प्रयोग पर व्यक्तिगत रिसर्च कई लोगों और संस्थाओं के साथ चल रहा है जहां से वह देश भर में बसों की प्रमुख किस्मों की नर्सरी के जरिए राईजोम उपलब्ध करा रही हैं, बांस गरीब किसानों के लिए एक बेहतर कैश क्रॉप है, वह आज इसे समझा पाने में सफल हुई हैं इससे पर्यावरण संतुलन तो बना ही रहता है साथ ही मिट्टी के जमाव में मदद मिलती है और मिट्टी का कटाव भी रुकता है।

पूसा नई दिल्ली ने भी किया सलाम
भारत सरकार की कृषि शोध की अग्रणी इकाई पूसा ने भी उनके प्रयोगों को सर आते हुए उनके द्वारा किसानों से उगाए हुए ग्रीन राइस के पेटेंट को भी हरी झंडी दी है

बिना जैविक खाद के नेचुरल खेती
डॉक्टर आरती साठे ने अपने छोटे से किचन गार्डन को सबसे पहले अपनी प्रयोगशाला बना कर नेचुरल फार्मिंग पर कई प्रयोग किए उन्होंने मात्र 900 स्क्वायर फीट की जमीन पर 53 प्रकार की साग सब्जी भाजी और फल उगा कर बिना किसी जैविक खाद और पेस्टिसाइड के नेचुरल फार्मिंग के नुस्खे तैयार किए, उन्होंने गाय के गोबर से बने हुए उपले और लकड़ी की राख से ही बेहतरीन सब्जियों का उत्पादन लेकर सभी को यह समझाया कि इस राख के प्रयोग से मैग्नीशियम आयरन और कैल्शियम की पूर्ति पौधों को कराई जा सकती है जिसका प्रयोग आज बड़े पैमाने पर वहां के स्थानीय किसान स्वयं कर रहे हैं।

महिला समूह द्वारा फ्लोरीकल्चर

ग्रामीण आदिवासी महिलाओं को खेती द्वारा आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए आरती साठे ने नेचुरल फार्मिंग के जरिए फ्लोरीकल्चर करके इन महिलाओं के जीवन में आर्थिक तरक्की का उजाला किया है आरती ने इन महिला समूहों को कई प्रकार की फूलों के सुगंधित तेलों को निकाल कर बाजार में ऊंचे दामों पर बिकवा कर फ्लोरीकल्चर की एक नई इबारत लिखी है उनके महिला समूह ने गेंदा, गुलाब, मेंथा ,नीलगिरी लेमन ग्रास , खस, रजनीगंधा इत्यादि कई परफ्यूम बेस्ड किस्मों से बेहतर आय का रास्ता सुझाया है।

डॉ आरती ने अपने प्रयासों से किचन गार्डन से लेकर कमर्शियल फार्मिंग सभी विधाओं में अपनी ट्रेनिंग के द्वारा लोगों को न सिर्फ जागरूक किया बल्कि उनकी आर्थिक तरक्की के लिए रास्ता भी दिखाया है उन्होंने स्कूल कॉलेजों से लेकर जेल के कैदियों को गार्डनिंग से मेडिटेशन के गुण सिखाकर नेचुरल फार्मिंग के जरिए मेंटल पीस और बिहेवरियल चेंज करके एक नई जीवन की अनुभूति प्रदान की है जो सिर्फ शांति और आनंद के साथ ही स्वास्थ्य और पर्यावरण संतुलन भी स्थापित करती है। आरती ने अपने सार्थक प्रयासों के जरिए आज अच्छे बीजों की किस्मों का एक सीड बैंक भी तैयार किया है इसके साथ ही वह एरोमा थेरेपी के लिए जो फूलों की खेती करती हैं उससे मधुमक्खी पालन और सुगंधित शहद का उत्पादन का भी जरिया किसानों को दिया है।


डॉक्टर आरती साठे के जीवन पर कई महत्वपूर्ण लोगों के साथ ही उनकी सासू मां डॉक्टर राजेश्वरी कुलकर्णी जो कि एक प्रसिद्ध गायनेकोलॉजिस्ट के साथ ही वास्तविक समाजसेवी भी थीं उनके आचरण का प्रभाव भी उनकी स्वयं की समाज सेवा में देखने को मिलता है , उन्हें प्रकृति और पर्यावरण के साथ पशु पक्षियों से भी खासा लगाव है तभी तो उन्होंने अपने फार्म हाउस पर देसी गोवंश पालकर पशु सेवा धर्म का भी पालन किया है।


आरती साठे को कई तरह के पुरस्कार और सम्मानों से नवाजा गया है तभी तो छत्तीसगढ़ के गांव और किसान कह रहे हैं

” इतना सारा काम तभी तो.. छत्तीसगढ़ आपको कर रहा है सलाम”