आज कहानी एक ऐसे एक्टर की, जिसकी जिंदगी ही किसी फिल्मी कहानी जैसी है। जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था, वो ब्रिटिश सेना में थे। दूसरा विश्वयुद्ध लड़ा, फिर देश की आजादी के लिए सुभाषचंद्र बोस की आजाद हिंद फौज में भर्ती हो गए। ब्रिटिश सरकार की खिलाफत के कारण इन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी, साथियों ने इन्हें बचा लिया। लंबे समय तक घर और गांव वाले इन्हें मरा ही समझते रहे। एक दिन अंग्रेज इन्हें ट्रेन से दूसरे शहर ले जा रहे थे, तो अपने गांव के स्टेशन पर चिट्ठी फेंककर ये सूचना घरवालों तक भिजवाई कि ये जिंदा हैं।
ये कलाकार थे नजीर हुसैन। नजीर ने हिंदी सिनेमा में करीब 500 फिल्मों में काम किया। नजीर ही वो शख्स थे, जिन्होंने भोजपुरी सिनेमा की नींव रखी। नजीर ने ज्यादातर पिता, दादा और चाचा जैसे रोल ही फिल्मों में किए। 500 फिल्में देने और भोजपुरी सिनेमा को शुरू करने के बावजूद इन्हें कभी कोई सम्मान नहीं मिला।
1972 की फिल्म मेरे जीवन साथी में नजीर हुसैन ने लालाजी का रोल प्ले किया था। इस फिल्म में राजेश खन्ना और नूतन भी थे। नजीर, राजेश खन्ना की प्रेम नगर, महबूबा जैसी फिल्मों में भी नजर आए।
1972 की फिल्म मेरे जीवन साथी में नजीर हुसैन ने लालाजी का रोल प्ले किया था। इस फिल्म में राजेश खन्ना और नूतन भी थे। नजीर, राजेश खन्ना की प्रेम नगर, महबूबा जैसी फिल्मों में भी नजर आए।
आजादी की लड़ाई में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का दिया साथ
भारत वापस आए तो अंग्रेजों की गुलामी से इनका मन भर चुका था। 40 के दशक में पहले ही देश में आजाद हिंद फौज बन चुकी थी जिसकी कमान नेताजी सुभाष चंद्र बोस के हाथ में थी। सुभाष चंद्र बोस से प्रेरित होकर नजीर भी इंडियन नेशनल आर्मी में भर्ती हो गए। बचपन से ही नजीर को लिखने में महारत हासिल थी तो इनके हुनर को समझकर सुभाष चंद्र बोस ने प्रचार-प्रसार के लिए लिखने का काम सौंप दिया।
अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने पर एक बार इन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी। नजीर को लाल किले में फांसी दी जाने वाली थी, लेकिन रास्ते में ही दोस्तों ने अंग्रेजों की गाड़ी पर हमला कर इन्हें बचा लिया।
साभार – गाजीपुर यूपी 61 फेसबुक वॉल से
फोटो-सोशल मीडिया