पंकज शर्मा”तरुण”
Revdi culture आजकल हमारे देश का राजनैतिक परिदृश्य काफी बदला बदला सा परिलक्षित हो रहा है। मतदाताओं की सोच को अपने पक्ष में करने के हर संभव प्रयास हर राजनैतिक दल करता है जो कि उनका संवैधानिक अधिकार भी है। स्वतंत्रता मिलने के पश्चात जब से गणतंत्र घोषित हुआ तब से यह अभियान चल रहा है। प्रारंभिक चुनावों में प्रमुख दल के रूप में सबसे विश्वसनीय और सशक्त दल कांग्रेस को ही भारतीय जन मानते थे। कारण कि स्वतंत्रता आंदोलन में इस दल के नेता जो कि स्वतंत्रता सेनानी माने जाते थे उनके दिए गए आश्वासनों पर मतदाता आंखें बंद कर विश्वास करते थे और अपने वोट एक तरफा इनको दे देते थे। समय ने शनैः शनैः करवट बदलना प्रारंभ किया और कथित घोटालों के आरोपों,आपातकाल,तुष्टिकरण,गरीबी,महंगाई परिवारवाद ,भाईभतीजा वाद आदि ऐसे अनेक कारणों के चलते जनता की मानसिकता में परिवर्तन आता गया।
Revdi culture लोक लुभावन योजनाओं का प्रारंभ
कांग्रेस की पिछली सरकारें पेट्रोल, डीजल, गैस और कंट्रोल के माध्यम से रोजमर्रा की आवश्यक वस्तुओं ( जिनमें सस्ते कपड़े तथा अनेक खाद्य सामग्रियां भी थी)पर सब्सिडी के द्वारा आम उपभोक्ताओं की सरकारी खजाने से सहायता करती थी। जो अप्रत्यक्ष सहायता होती थी। जिससे उपभोक्ता को यह समझ नहीं आता था कि सरकार उसको कैसे सहायता दे रही है।
बाद में गैर कांग्रेसी सरकारों के दलों ने भी विभिन्न लोक लुभावन योजनाओं को प्रारंभ किया। किसी ने महिलाओं को साड़ियां तो किसी ने अन्य सामग्रियां देना शुरू किया । अनेक राजनीतिक दल नकदी बांट रहे थे तो कोई शराब की बोतलें भी बांट रहे थे मगर यह छुपते- छुपाते किया गया। तत्पश्चात आम आदमी पार्टी का उदय हुआ, भ्रष्टाचार के समूल खात्मे के लिए।
अन्ना हजारे के नेतृत्व में प्रारंभ हुए आंदोलन में ऐसे लोकपाल की परिकल्पना थी जिसमें देश के प्रधानमंत्री तक को लाया जाए। मगर इस आंदोलन से ऐसा दल निकला जिसने मुफ्त की बिजली ,मुफ्त के स्कूल, मुफ्त के मोहल्ला अस्पताल जैसी योजनाएं चलाई । इन योजनाओं को मुफ्त की रेवड़ी का नाम भी दिया जाने लगा। इसके देखा देखी भारतीय जनता पार्टी ने भी मध्य प्रदेश में लाड़ली लक्ष्मी,कन्यादान योजना एवं अन्य कई योजनाएं चलाई, जिसमें महिलाओं के बैंक खातों में सीधे नकद राशि स्थानांतरित करना प्रारंभ की, पहले एक हजार फिर बारह सौ। इस प्रकार सभी दलों को सत्ता का शॉर्ट कट मिलने लगा और आगे चलकर महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में लाड़की बहना योजना में अरबों रुपए महिलाओं को इसी तर्ज पर दिए और पुनः सरकार बन गई।
अन्य राज्यों में भी किसी न किसी रूप में लुभावनी रेवड़ियां बांटने का सिलसिला प्रारंभ हो गया है चाहे हिमाचल हो,कर्नाटक हो,झारखंड हो,पंजाब हो या हरियाणा। कोई इसे सहायता राशि कह रहा है तो कोई रेवड़ी। है तो यह सीधे सीधे रिश्वत ही जो हमारे दिए गए करों की राशि है जो देश के विकास में लगाने हेतु सरकार को दिए जाते हैं। मगर यह राशि नेताओं की अति महत्वाकांक्षाओं की भेंट चढ़ रही है। यह जमीनी हकीकत हमारे भारतीय प्रजातंत्र के लिए आने वाले समय में घातक होने वाली है। समय रहते हमें इस रेवड़ी संस्कृति की फलती फूलती विनाशकारी विष बेल को समूल उखड़ कर फेंकना ही होगा वरना ऐसी विनाशकारी नीतियां लोकतंत्र के लिए घातक ही साबित होंगी।