भारत भूषण काटल
संजीव कुमार जितने अच्छे अभिनेता थे उतने ही अच्छे इंसान भी थे । मेरी अपनी ज़ाती राय है कि दिलीप कुमार के बाद फिल्म के कैरेक्टर में घुसना और उसको पेश करना संजीव कुमार का ही काम था ।
दिलीप कुमार जी के साथ इनकी फिल्में संघर्ष और विधाता देख के आप को बखूबी अंदाज़ा हुआ होगा के वो किस लेवल के अभिनेता थे,अशिक मिज़ाज भी थे। नूतन , मौसमी चटर्जी, हेमा मालिनी से होते हुए सुलक्ष्णा पंडित तक इनके किस्से सुने जाते थे।
कहते हैं नूतन से एक बार पिटे भी थे । किस्सा उन दिनों का है जब नूतन की शादी हो चुकी थी वोह एक मंझी हुई टॉप क्लास की अभिनेत्री थीं और संजीव कुमार नए नए फिल्मों में काम कर रहे थे।इन दोनों की एक फिल्म आई थी” गुस्ताखी माफ़ ” इस फिल्म की शूटिंग के दौरान एक बार नूतन ने सेट पर आते ही गुस्से में संजीव कुमार को एक ज़ोरदार थपड़ रसीद कर दिया। पूरा यूनिट खामोश और हैरान रह गया।
नूतन के कहने के मुताबिक संजीव कुमार यह झुटी बात फैला रहे हैं की हम दोनों का रोमांस चल रहा है और इस कारण नूतन की छवि खराब हो रही थी और घर में भी तनाव बढ़ रहा था। संजीव कुमार ने कुछ नहीं कहा और खामोशी ही बनाए रखी।
हेमा मालिनी को वो चाहते थे और शादी करना चाहते थे अपनी बात हेमा मालिनी तक पहुंचाने के लिए जीतेंद्र को कहा मगर जितेंद्र ने उनकी बात आगे क्या रखनी थी उल्टा अपना पत्ता वहां फिट कर दिया, (दोस्त हों तो जितेंद्र जैसे हों वरना ना हों)
खैर वहां धर्म पा जी आ धमके और हेमा मालिनी को ले उड़े। मौसमी चटर्जी के साथ भी कुछ किस्से छपते थे फिल्मी मैग्जीनों में उन दिनों में बातें उड़ती कि संजीव शराब पीकर उनके घर आ धमके वगैरह वगैरह। अब ये सब बातें उस समय की गॉसिप फिल्मी मैगजीनों में छपती थी इन बातों में कितनी सच्चाई थी यह कह नहीं सकते।
सुलक्ष्णा पंडित दिल से संजीव कुमार जी को चाहती थी और आखिर तक चाहती रहीं । संजीव कुमार के देहांत के बाद वो बहुत दुखी रहने लगी और फिल्मों से भी दूर हो गईं ,
आज कल सुनते हैं वो ज़ेहनी तौर पर बीमार हैं और किसी से मिलना जुलना पसंद नहीं करतीं।
प्यार इश्क में तो संजीव कुमार नाकाम सिद्ध हुए मगर अदाकारी के मामले में कोई उनका हाथ नहीं पकड़ पाता था।उन्होंने एक बार अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि उनके खानदान में कोई भी व्यक्ति 50 साल तक नहीं जिया उनके भाई उनके पिता सब 50की उम्र को नहीं छू सके और शादी ना करने का उनके कहने के मुताबिक ये भी एक बड़ा कारण था।
ये सब किस्से फिल्मी रिसालों, फिल्मी मैग्जीनों में छपते थे इन में सच्चाई का कितना अंश होता था यह कहना मुश्किल है।
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