कालिंजर किले की कहानी , बीरबल से लेकर अंग्रेज़ों ने बिताए यहां अपने दिन

रामेन्द्र सिंह (वरिष्ठ पत्रकार)

कालिंजर पहाड़ी की चोटी पर स्थित इस क़िले में अनेक स्मारकों और मूर्तियों का खजाना है। इन चीज़ों से इतिहास के विभिन्न पहलुओं का पता चलता है। चंदेलों द्वारा बनवाया गया यह क़िला चंदेल वंश के शासन काल की भव्य वास्तुकला का उदाहरण है। इस क़िले के अंदर कई भवन और मंदिर हैं।

इस विशाल क़िले में भव्य महल और छतरियाँ हैं, जिन पर बारीक डिज़ाइन और नक्काशी की गई है। क़िला हिन्दू भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। क़िले में नीलकंठ महादेव का एक अनोखा मंदिर भी है।

इतिहास के उतार-चढ़ावों का प्रत्यक्ष गवाह बांदा जनपद का कालिंजर क़िला हर युग में विद्यमान रहा है। इस क़िले के नाम अवश्य बदलते गये हैं। इसने सतयुग में कीर्तिनगर, त्रेतायुग में मध्यगढ़, द्वापर युग में सिंहलगढ़ और कलियुग में कालिंजर के नाम से ख्याति पायी है। कालिंजर का अपराजेय क़िला प्राचीन काल में जेजाकभुक्ति साम्राज्य के अधीन था। जब चंदेल शासक आये तो इस पर महमूद ग़ज़नवी, कुतुबुद्दीन ऐबक और हुमायूं ने आक्रमण कर इसे जीतना चाहा, पर कामयाब नहीं हो पाये। अंत में अकबर ने 1569 ई. में यह क़िला जीतकर बीरबल को उपहार स्वरूप दे दिया।

बीरबल के बाद यह क़िला बुंदेल राजा छत्रसाल के अधीन हो गया। इनके बाद क़िले पर पन्ना के हरदेव शाह का कब्जा हो गया। 1812 ई. में यह क़िला अंग्रेज़ों के अधीन हो गया।