डॉ. कुलदीप कौर
क्यों मुझे काटते चले गए
मेरा क्या कसूर था..
क्यों मुझे भी इतनी पीड़ा..
मेरे वक्ष पर हजारों चिड़ियों के घोंसले थे जिसको तुमने बेघर कर दिया…
मेरी छाया में राहगीर बैठकर सुस्ता लिया करते थे..
कभी धूप से कभी बारिश से अनजान पथिकों की दूर हो जाती थी थकान….
क्यों मुझे काटते चले गए..
कितना दर्द दिया तुमने मुझे अपना आशियां बनाने में…
मेरा आशियां छीन कर..
क्यों मुझे काटते चले गए!