पिरुल के विभिन्न उत्पादों से बढ़ेगा उत्तराखंड में रोजगार -मुख्य सचिव

देहरादून, उत्तराखंड के मुख्य वन उत्पादों में सबसे ज्यादा पाया जाने वाला उत्पाद पिरुल है, जिसका मुख्य प्रयोग ईंधन के रूप में सालों से होता आया है । चीड़ की 20 से 25 सेंटीमीटर तक लंबी नुकीली सूखी पत्तियों को ही पिरुल कहा जाता है जोकि बेहद ज्यादा मात्रा में घास के तौर पर वनों में बिछी रहती है इसमें तेल की मात्रा अधिक होती है ।

चीड़ के पेड़ और जमीन पर बिछी पिरुल-Photo social media

पहाड़ों में रहने वाले लोग अक्सर इसकी पत्तियों से अपने चूल्हे की आग जलाकर खाना बनाते आए हैं वनों में यह बहुतायत मात्रा में मिलता है और इसकी पत्तियां सूखकर आग का कारण भी बनती है जिसका निस्तारण बेहद आवश्यक हो जाता है पिरुल के बेहतर उपयोग के लिए कई प्रकार के उद्यम पहाड़ों में आजीविका का साधन बन सकते हैं और इससे अक्सर पहाड़ों में लगने वाली आग पर काबू पाया जा सकता है पहले भी विरुल को लेकर नैनीताल जैसे जिलों में महिलाओं के स्वयं सहायता समूह विभिन्न प्रकार के उत्पाद बनाकर अपनी आजीविका कमा रहे हैं साथ ही सरकार ने भी पिरुल से बिजली बनाने की बात कही थी ,

चीड़ के पेड़ -Photo Social media ⁶

आज इसी बात के समाधान के लिए मुख्य सचिव डॉ. एस.एस. संधु ने सचिवालय में पिरूल से आजीविका सृजन, वैकल्पिक ईंधन आदि के क्षेत्र में कार्य करने के इच्छुक विभिन्न उद्यमियों के साथ विचार विमर्श करते हुए उनके सुझाव मांगे। इस दौरान उन्होंने एक कॉर्पस फंड बनाए जाने के निर्देश दिए। सीएस ने उद्यमियों को शुरूआती सहायता प्रदान किए जाने हेतु पहले 5 सालों में उद्यमियों द्वारा दिए जाने वाले GST का 70% सब्सिडी दिए जाने के भी निर्देश दिए। साथ ही उन्होंने कहा कि इस दिशा में विभिन्न पर्वतीय प्रदेशों में प्रयोग हो रही बेस्ट प्रेक्टिसेज को भी प्रदेश में अपनाया जाए। मुख्य सचिव ने कहा कि पिरूल के ट्रांसपोर्टेशन में कोई समस्या न हो इसके लिए ई-रवन्ना जारी करते हुए इसकी ट्रांजिट फीस को न्यूनतम किया जाए। सीएस ने कहा कि ईंधन के रूप में प्रयोग होने वाले ब्रिकेट्स/पैलेट्स की मार्केटिंग आदि की व्यवस्था भी सुनिश्चित की जाए। मुख्य सचिव ने कहा कि वनों से पिरूल का अधिक से अधिक निस्तारण हो सके इसके लिए इसके विभिन्न उत्पादों को बढ़ावा दिए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने वन विभाग और एमएसएमई को इस दिशा में कार्य कर रहे उद्यमियों और स्वयं सहायता समूहों को हर सम्भव सहायता उपलब्ध कराए जाने की बात कही। बैठक में प्रमुख वन संरक्षक (HoFF) विनोद कुमार, सचिव डॉ. पंकज कुमार पाण्डेय, विजय कुमार यादव एवं निदेशक उरेडा श्रीमती रंजना राजगुरू सहित पिरूल से सम्बन्धित विभिन्न उद्यमी उपस्थित थे।