प्रभात उत्प्रेती (लेखक जाने-माने शिक्षाविद हैं)
ईरान में हिजाब से उतर आये हैं चेहरे
शक्ति रूपेण…!
खून इतना होगा सस्ता मज़हब का
यह नहीं मालूम था औरतों को
नहीं मालूम था उन्हें
वह बाइलाॅजीकली
जहन से जिस्म तक
होती हैं इतनी खूबसूरत
हसीन जलवा है गाह तक
इसीलिए हो जाती हैं
नकाब में, परदे में
न होने से बदचलन
वह गर जल जायें तो
आग हो जाती हैं
और बहुंत दूर तक धूंआ छोड़ती हैं
फिर क्या !
निकल आए हैं टेलेंटेड तानाशाह
टेलेंट हंट से छंट कर
कभी उत्तरपंथी और
आज दक्षिणपंथी इस दुनिया से ऊपर
और एक कौन सी जन्नत है
जो कि दुनिया जहन्नुम हुई जा रही है
और यह मुआ मर्द!
जिसे दर्द नहीं होता
सिर्फ मूंछ दाढी रखने से
मिल जाता है इन्हें लाइसेंस
मर्द होने का!
बदहवास बहशी होने का!
(विराम हांफते हुए)
नयी तकनीकी खेप में
जगह जगह से
रिजॉर्ट से निकलने लगे हैं
अलग अलग किस्म के रावण
पके बालों में खिजाब लगाये
दे धक्का पेल…
नाभी में अमृत कुंड
का बीमा किये हुए
इनके हाथ
कानून से लम्बे हैं!
फाड़े हुए हिजाबों से हैं मुंह छिपाए
भीड़ में
कुछ रक्तबीज
छोटे रावण भी
यों ही टहलते हुए
निकल आए हैं
यह आदमी!
(बदहवास गाली)
इतना कमजोर कि
हर चोट में
मां मां कहते रोता है
और कभी
बहवास हुआ
मां की गाली देता है
अफगानिस्तान, हिंदुस्तान
उत्तराखंड की देवभूमि में
युद्ध में, घर में सड़क के
दुर्घटना स्थलों में
नंगी कर देती हैं आंखे
उनके जिस्म को
उतार ली जाती है
वह तथाकथित इज्जत
जनहित में
इतना जुल्म हो लिया है
कि शर्म आती है जुल्म को
वक्त भी पलट पलट के
देखने लगा है
युद्ध क्षेत्र को
जो सरेआम है
सरेआम ललकार रहे हैं
ओपनली
रावण, राम को
और राम के धनुष की प्रत्यंचा है कि
खिंचती ही नहीं
भेदवा विभीषण को
अल्जाइमर हो गया है
वह बताए तो क्या बतलाए
ऐसे में कोई क्या करें!
लाचारी का डर
हर किसी को खा जो जाता है
अब तुम ही बताओ हे राम !
हम क्या करें!
आपकी अर्चना करें!
शस्त्र पूजा करें!
या रावणों का फाॅर्मल दहन !
पूर्व में सूरज डूबा जा रहा है
पश्चिम का धूंआ
हमारे घर में आ रहा है
करें तो क्या करें राम!
( निराशा बैकग्राऊंड में लंगड़ाती)
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता…. !
देवी तुम ही उजागर होलो
अब राम जो विस्मय से अवाक हैं
उन्हें कृष्ण होने की
याद दिला दो
ये जो खड़ा है राक्षस
मुंह और आंख फाड़े
उसकी छाती पर चरण जमा
धूल चटा दो
उसे अपनी मां की याद दिला दो