ज्ञान की नगरी में महिलाओं का इज्ज़त घर के लिए संघर्ष:जानिए

Peeyoosh Mayank

प्रयागराज,प्रयागराज सांस्कृतिक विरासत ,चिंतन और आध्यात्म का केंद्र बिंदु रहा है ! वर्तमान में भी इसकी जड़ें बहुत गहरी हैं जहां चिंतन और चिंतक दोनों की आपसी जुगलबंदी का पूरा विश्व लोहा मानता हो ! वहीं एक चैतन्य शहर में महिलाएं शौचालय के निर्माण के लिए 165 वर्ष से इंतजार कर रही हैं !तो सोचिए कितने आधुनिक और उच्चतम होने की खोखली व्यवस्था में जिया जा रहा है? यह प्रसंग पूरी तरह से प्रासंगिक और मौलिक है ..कि जिस शौचालय में पुरुष जाते हों उसी शौचालय में महिलाएं जाने के लिए अभिशप्त हैं! प्रयागराज के राजकीय मुद्रणालय की महिलाओं ने इस मुद्दे को राष्ट्रीय मुद्दा बनाने की कोशिश की है ,जो अपने आप में अचंभित पहल है क्योंकि हम एक आज़ाद,सभ्य और सांस्कृतिक विरासत वाले देश के नागरिक हैं जहां नारी को पूजा जाने के किस्से भाषणों में हर दिन उछलते हैं और किताबों में छपते हैं। प्रयागराज प्रशासन आखिरकार इन मुद्दों पर कितना गंभीर है !यह तो देखने की बात होगी लेकिन इससे ज्यादा शर्मनाक कुछ और हो भी नहीं सकता है! महिला कर्मचारियों ने इस मुद्दे पर कई बार प्रशासन का ध्यान इस ओर दिलाने की पूरी कोशिश की है ,लेकिन सफलता अभी तक नहीं मिल पाई है

बॉलीवुड के कलाकारों ने टॉयलेट को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए फिल्म तक बना डाली है! करोड़ों रुपए निर्माता निर्देशकों ने कमा भी लिए !लेकिन इस ज्वलंत मुद्दे पर प्रयागराज पूरी तरह से चुप है !लोग भी इसे रूटीन धरना प्रदर्शन और आंदोलन मानने लगे हैं प्रयागराज की सांसद रीता बहुगुणा जोशी ने भी अब तक महिला कर्मचारियों की मूल समस्या पर कोई चिंतन नहीं किया है, इस आंदोलन के बाद प्रयागराज के अन्य कर्मचारी संगठनों ने भी महिलाओं की टॉयलेट वाली मांग को लेकर उनको नैतिक समर्थन देने की घोषणा कर दी है विकास भवन कर्मचारी महासंघ के नेता राजेंद्र कुमार त्रिपाठी ने बताया कि हम सभी 21वीं सदी में जी रहे हैं! लेकिन सरकार किसी की भी रही हो इस मौलिक समस्या पर किसी भी प्रशासनिक अधिकारी का ध्यान कभी नहीं गया है ,जब कि इस समस्या से निपटने के लिए प्रशासनिक इच्छा शक्ति की जरूरत है !अगर यह जायज मांग शीघ्र पूरा नहीं हुई तो प्रयागराज के सभी कर्मचारी संगठन बड़े आंदोलन को करने के लिए बाध्य होंगे! कुल मिलाकर महादेवी वर्मा सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, उपेंद्र अश्क, शुभा मुद्गल, फिराक गोरखपुरी जैसी महान विभूतियों का प्रयागराज का प्रशासन एक सार्थक निर्णय लेने में असफल दिख रहा है।