विश्व प्रेस फ्रीडम डे और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता

रीना त्रिपाठी शिक्षाविद एवं समाजसेवी है
   विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई देते हुए आज समय आ गया है की हम सब प्रेस की स्वतंत्रता के असली मायने को समझें और लोकतंत्र के समस्त प्रहरी के रूप में अपनी जिम्मेदारी का निष्ठा पूर्वक निर्वहन करने वाले पत्रकारों के साथ खड़े हो।

जैसा कि सर्वविदित है आज ही दिन 1993 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 3 मई (विंडहोक घोषणा) को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस घोषित किया गया था। तब से 3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में मजबूती से खड़े प्रेस प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के रूप में आज के वैश्विक युग में अपनी प्रगति के चरम पर पहुंच रहा है। आवश्यकता है कि हम प्रेस की स्वतंत्रता की कद्र को समझें प्रेस की स्वतंत्रता के असली महत्व और उसके सामाजिक हित के बारे में जागरूक हो समाज गरिमा पूर्ण जीवन जी सके इसके लिए परम आवश्यक है कि प्रेस स्वतंत्रता पूर्वक समाज को आइना की तरह सच्चाई दिखा सके।

   अनेक देशों में स्वतंत्र मीडिया के प्रसार और डिजिटल प्रौद्योगिकी के अभ्युदय ने सूचना के मुक्त प्रवाह को तीब्र एवं प्रभावी गति दी है।फिर भी मीडिया की स्वतंत्रता, पत्रकारों की सुरक्षा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर संगठित रूप से नियंत्रण के प्रयासों में भी निरंतरता बनी हुई है। आज हम आए दिन  मीडिया को कटघरे में खड़ा पाते हैं कभी सच्चाई दिखाने पर तो कभी सच्चाई ना दिखाने पर।
    मीडिया की आजादी अनिवार्यतः अभिव्यक्ति की आजादी का अंग है। इसके बिना अन्य मानवाधिकारों की सुरक्षा असम्भव ही है।अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संघर्ष, हिंसा, सामाजिक-आर्थिक असमानता, प्रवासन, पर्यावरणीय संकट, के साथ ही, लोकतंत्र, कानून के शासन और मानवाधिकारों के संरक्षण हेतु समर्पित व्यक्ति एवं संस्थाओं को हितबद्ध समूहों द्वारा अनेक प्रकार से क्षति पहुंचाने की प्रवृत्ति भी बढी है।
  इनसे उत्पन्न खतरों का मुकाबला करने के लिए ही प्रेस की स्वतंत्रता, पत्रकारों की सुरक्षा और सूचनाओं तक पहुंच सुनिश्चित करने हेतु अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार, मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा के अनुच्छेद 19 में प्रतिष्ठापित किया गया है, जो शेष समस्त मानवाधिकारों की प्राप्ति हेतु अपरिहार्य है।
  आज विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस की सभी मीडिया कर्मियों (जो अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में भी अनेक खतरे उठाकर हमारे मानव अधिकारों की रक्षा हेतु सतत कार्य करते हैं), को एक सामाजिक संभल की जरूरत है। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ में पारदर्शिता, निर्भीकता, ख़बर के प्रति इमानदारी और सच को सच कहने की ताकत तभी आ सकती है जब समाज का प्रत्येक समुदाय मीडिया बंधुओं के साथ खड़ा रहे।
     आज के उपभोक्तावादी युग में हम सत्ता की लोलुपता और मीडिया की सांठगांठ के भी कई किस्से सुनते रहते हैं। उन किस्सों में कितनी सच्चाई है यह भी हमें प्रेस के द्वारा ही पता चलता रहता है। फिलहाल सभी पत्रकार बंधुओं को, लोकतंत्र के उन सशक्त प्रहरियों को जो दिन रात अपनी मेहनत और लगन से समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निष्ठा पूर्वक निर्वहन करते हुए हम सबको सच पढ़ाते और दिखाते हैं अपनी खुद की दिनचर्या खतरों और संघर्षों में बिताते हैं सभी बहुत-बहुत बधाई के पात्र हैं।