यशोधरा

(गौतम बुद्ध ने जब दिव्य ज्ञान की प्राप्ति के लिए गृह परित्याग किया तो वो अपनी पत्नी यशोधरा और पुत्र को निद्रामग्न छोड़ कर चले गये थे।भगवान बुद्ध के प्रति पूरी श्रद्धा रखते हुए इस कविता के माध्यम से मैने यशोधरा की मनोदशा को चित्रित करने का छोटा सा प्रयास किया है🙏🏻)


माना तुम विशिष्ट बड़े थे,
गहन ज्ञान तुम्हें पाना था,
पर सहधर्मिणी बना कर लाये मुझे,
मुझसे तो कहकर जाना था।

मन का भेद कहा ना तुमने,
ना मुझसे कोई संवाद हुआ,
सोती छोड़कर चले गये तुम,
मुझसे क्या अपराध हुआ?

हुए विमुख, किया सब विस्मृत,
कई प्रश्न अनुत्तरित छोड़ गये,
परिणय सूत्र से मैने बुने स्वप्न थे,
सब स्वप्नो को तोड़ गये।

इतने वर्ष बिताये संग,
क्या उसका कोई मोल नहीं,
क्या इतना ही समझ पाये मुझे,
दुख का कोई छोर नही।

मैं पथ-बाधा ना बनती,
ना मार्ग से तुम्हे डिगाती,
एक बार जो कह देते मुझसे,
मैं राहों में बलि बलि जाती।

हृदय शून्य हुए तुम या,
मिथ्या जन्मों का नाता है,
क्यों मेरे हृदय का आर्त्तनाद,
तुम तक पहुंच न पाता है?

निरीह अबोध यह शिशु तुम्हारा,
कुछ भी समझ ना पायेगा,
तुम तो प्राप्त करोगे प्रबोधन,
इसे कौन समझाएगा।

पितृ-स्नेह से हुआ ये वंचित,
जो इसका अधिकार है,
इस पुत्र का लालन पालन
क्या केवल मेरा भार है?

पा लोगे तुम तत्त्व-ज्ञान,
विश्व को भी समझाओगे,
हुआ जो मुझ पर वज्राघात,
क्या उसे समझ तुम पाओगे?

जीवन पथ पर हूँ एकाकी,
छा गई एक रिक्तता,
सहज नहीं है इतना यह,
पर अडिग करूंगी सामना।

कर्तव्य निर्वहन करूंगी सारे,
नन्हे पुत्र को पालूंगी,
ये जीवन युद्ध अब मेरा है,
अब मैं गान्डीव सम्भालूंगी।


 ✍🏼 निभा राजीव