रंजना श्रुति Photo – Social Media श्री गोपाल दास नीरज मुझे प्रतीत होता है खुद में ही प्रेम के शब्दकोश थे । प्रेम की प्रतिलिपि में लिखित एक महाकाव्य थे । अनगिनत रचनाएं लिखी उन्होंने बल्कि यूं कहूं कि साहित्य की प्रति विधा में लिखा उन्होंने । जीवन के सभी …
Read More »कहानी कविता
हिजाब में औरतें
खिजाब में मर्द
प्रभात उत्प्रेती (लेखक जाने-माने शिक्षाविद हैं) ईरान में हिजाब से उतर आये हैं चेहरेशक्ति रूपेण…!खून इतना होगा सस्ता मज़हब कायह नहीं मालूम था औरतों कोनहीं मालूम था उन्हेंवह बाइलाॅजीकलीजहन से जिस्म तकहोती हैं इतनी खूबसूरतहसीन जलवा है गाह तकइसीलिए हो जाती हैंनकाब में, परदे मेंन होने से बदचलनवह गर जल …
Read More »भाषा
भाषा कब कहती हैमैं बड़ी या छोटी…भाषा कब कहती है.मुझे कहो या नहींहम खुद भाषा पर उंगली उठाते हैं।भाषा सिर्फ अँग्रेजी या हिन्दी नहींभाषा है…..उस दूर खड़े बच्चे का आपको देखकर मुस्करानाअजनबी पथिक का बिना शब्द शैली केलोगों से संचार होना….भाषा का व्याकरण जाने बगैर भीआप उसके प्रसारक हो सकते …
Read More »तिरंगे वाली बेटियाॅं
कई प्रदेश हैं देश में हमारे।गुंथे हार में सुरभित सुमन प्यारे।विविध रूप-रंग, भाषा निराली ,भारत के अंग हैं कितने सारे ।। विभिन्न वेश-भूषा, मधुर बोलियां।अनेकता में एकता की टोलियां।मातृभूमि, कर्मभूमी सब यही ,हम भरें खुशियों से सबकी झोलियां। देश में हो शांति और अखंडता।विकास रथ बढ़ता रहे भारत का।।एकता के …
Read More »कमाल के थे कलाम साहेब
मनीष चंद्रा तिरंगे को भी फक्र हुआ …कितनी कीमती दौलत से वो लिपटा हुआ थाइतनी मुद्द्त नसीब नहीं वक़त आखिरी में किसी को …जितनी देर वो रहा साथतमाम भीड़ की ख्वाहिश मचल रही थी …हर आँख दीदार को तड़प रही थीकोई छूना चाह रहा था …. तो कोई चूमनाज़मीन ,हवा …
Read More »वृक्ष की व्यथा
डॉ. कुलदीप कौर क्यों मुझे काटते चले गएमेरा क्या कसूर था..क्यों मुझे भी इतनी पीड़ा.. मेरे वक्ष पर हजारों चिड़ियों के घोंसले थे जिसको तुमने बेघर कर दिया… मेरी छाया में राहगीर बैठकर सुस्ता लिया करते थे..कभी धूप से कभी बारिश से अनजान पथिकों की दूर हो जाती थी थकान…. …
Read More »बस इतना ही काफी है..
Dr Kuldeep Kaur ख्वाहिश नहीं मुझे_मशहूर होने की,”आप मुझे पहचानते होबस इतना ही काफी है अच्छे ने अच्छा और_बुरे ने बुरा जाना मुझे,_ जिन्दगी का फलसफा भी_कितना अजीब है,_ एक अजीब सी_दौड़’ है ये जिन्दगी जीत जाओ तो कई_अपने पीछे छूट जाते हैं और_ हार जाओ तोअपने ही पीछे छोड़ …
Read More »बचपन…
पंख नहीं पर उड़ जाता है।इंद्र धुनुष सा बन जाता है,सात रंगों से भरी है दुनियाहर रंग कितना न्यारा हैबचपन कितना प्यारा है भोली सूरत सच्ची सच्चीबिन मांगे सब मिल जाता हैहर बच्चा अपने घर का हीहोता राज दुलारा हैबचपन कितना प्यारा है……… मस्त पवन सा उड़ जाता है,फूल की …
Read More »यशोधरा
(गौतम बुद्ध ने जब दिव्य ज्ञान की प्राप्ति के लिए गृह परित्याग किया तो वो अपनी पत्नी यशोधरा और पुत्र को निद्रामग्न छोड़ कर चले गये थे।भगवान बुद्ध के प्रति पूरी श्रद्धा रखते हुए इस कविता के माध्यम से मैने यशोधरा की मनोदशा को चित्रित करने का छोटा सा प्रयास …
Read More »हम स्कूल चलेंगे..
आसिया फ़ारूक़ी शिक्षिका, फ़तेहपुर (उ.प्र.) हम बच्चे फिर स्कूल चलेंगे।उम्मीदें नव झूल चलेंगे।मीत बनेंगे प्यारे-प्यारे,हस्ते- गाते रोज़ मिलेंगे । खेलेंगे हम खूब पढ़ेंगे ।जीवन अपना स्वयं गढ़ेंगे।हारे हैं न कभी हारेंगे,विजयी बनकर ही निखरेंगे।। हम देश का भविष्य बनेंगे।ये साबित कर दिखलाएँगे।धीर, वीर, तकदीर बनेंगे ,सरहद पर शमशीर बनेंगे।। हम …
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