कहानी कविता

कविता दिवस

अरुणा मनवर तीन अक्षरों का अरुणा मेरा नाम …बिल्कुल तुझ जैसा कविता.मेरे शब्द मेरा मौन मेरा चिंतन तेरा रूप तेरी काया..तू ही तो है मेरी व्याख्या.. स्पंदन से हल्कीध्वनि सरीखी चितवन सी तूबिछड़ो की विरह तू ..प्यासों का गीत ..पपीहे का मीत.. इतना छोटा नाम फिर भी सागर की अनंतता.क्या …

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विधवा

“अरुणा मनवर * विधवा वो जिसके नहीं होते हैं रिश्तेदारसिर्फ और सिर्फ होते हैं पहरेदार….कहां क्यों कैसे और किसकेबस यही सवाल रहते हैं उससे….उसका बोलना, हंसना,चलना, फिरना,उठना और बैठना,खाना-पीना और ओढ़ना….इन सब पे नजरें रहती है सबकीजैसे कि उसने जिंदगीगिरवी रख दी हो खुद की….दुनिया की नजरों मेंपहले से अच्छी …

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औरतें बहुत सरल होती हैं

प्रभात उत्प्रेती सेवानिवृत्त लेक्चर, हल्द्वानी औरतें बहुत सरल होती हैं इसलिए उन पर कविता भी आसानी से लिखी जा सकती है औरतें बहुत आसान होती हैं इसलिए उनकी तारीफ कर के जब चाहे खाना बनवा लो जब चाहे बच्चे पलवा लो जब चाहे……… और ये भी हैं हर औरत औरत …

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प्रेम में मरती लड़कियां

Virendra Bhatiya लड़कियां सूरज से प्रेम करती हैंकरती रहती हैंजल चढ़ाती हैंठंडा करती हैं बार-बारगुस्साये सूरज केप्रेम में जलती रहती हैंजल मरती हैं लड़कियां समन्दर से प्रेम करती हैंखार मिटा देने की जिद लिएसमन्दर के भीतर घुस जाती हैंभर मिठास/भर नदीखारा खारा ही रहता हैमर जाती हैं लड़कियांखार के समन्दर …

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बहती जाऊॅं

नदियों सी मैं बहती जाऊॅं।घाट-घाट से कहती जाऊँ।बिना थके, बिना रुके हरदम,हर सीमा को तोड़ दिखाऊं।। उजले-उजले आसमान पर,अपनी एक पहचान बनाऊँ।भूखे प्यासे व्याकुल जन की,मैं ठंडे जल से प्यास बुझाऊं।। रुक जायें जो बीच सफर में,मंज़िल तक उनको ले जाऊं।बादल बनकर आसमान से,धरती पर मैं जल बरसाऊं।। रंग-बिरंगे सुंदर …

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हम सब बोलें मीठे बोल

बात पते की सुन लो बच्चोजब भी खेलो मिलकर खेलो।जब भी बोलो हंसकर बोलो,बातों में मिसरी सी घोलो।। अच्छे और बुरे कामों को,मन की आंखों से तुम तोलो।जब बोलो तब सच-सच बोलो,कभी न बातें रच-रच बोलो।। हंसकर मन की गांठें खोलो,दिल से दिल का रिश्ता जोड़ो।जब बोलो तब झुक कर …

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नहीं भूली हूँ

नहीं भूली हूँ मैं आज तकअपने बचपन का वो पहला मकानपिता जी का बनाया वो छोटा मकानकुछ ऋण ऑफिस सेबाकी गहने माँ के काम आएमेरे लिए वो ताजमहल थासफेद न सही लाल ही सहीछत पर सोने का मज़ा तो वैसे भीताजमहल में कहाँ आ सकता थानहीं भूली हूँ आज तक …

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सच

सच लिखूँ तोकविता झूठी हो जाती हैंझूठ लिखूँरिश्ता बेमानी हो जाता हैकशमकश तो हैफिर भी दिल ने यही चाहा हैकि तुम हमेशामेरी कविता में जीवित रहो डाॅ.अनिता कपूरकैलीफोर्निया अमेरिकासंस्थापिका- ग्लोबल हिंदी ज्योतिलेखक,कवि पत्रकार

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खिलने दो

ना तोड़ो कली कच्ची,अभी डाली पे रहने दो।बनके फूल प्यारा-सा,अभी उपवन में खिलने दो। करो न जुल्म कलियों पर,कर लो प्यार इनसे तुम।इनके भी हैं सपने,उन्हें साकार कर दो तुम। रौंदी जाएं ना कलियांहक जीने का इनको है।जहां में मुस्कराने का,हक इनका भी तो है। सजने दो संवरने दो,खुद में …

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सरसों के फूल …

पता है तुम्हें ..मायके जब लौटती हैं बेटियां सर्दी के दिनों में…पीले फूल याद दिलाते हैं …बचपन। पीले फूल याद दिलाते हैं .. शैतानियांपीले फूल याद दिलाते हैं .. नादानियां …दादी ,नानी ,मां की कहानियांपीले फूल याद दिलाते हैं सहेलियों की कहानियां…नरम गरम गुदगुदी बचकानी मिट्टी जैसी खुश्बू वाली चटनी …

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