कहानी कविता

बहती जाऊॅं

नदियों सी मैं बहती जाऊॅं।घाट-घाट से कहती जाऊँ।बिना थके, बिना रुके हरदम,हर सीमा को तोड़ दिखाऊं।। उजले-उजले आसमान पर,अपनी एक पहचान बनाऊँ।भूखे प्यासे व्याकुल जन की,मैं ठंडे जल से प्यास बुझाऊं।। रुक जायें जो बीच सफर में,मंज़िल तक उनको ले जाऊं।बादल बनकर आसमान से,धरती पर मैं जल बरसाऊं।। रंग-बिरंगे सुंदर …

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हम सब बोलें मीठे बोल

बात पते की सुन लो बच्चोजब भी खेलो मिलकर खेलो।जब भी बोलो हंसकर बोलो,बातों में मिसरी सी घोलो।। अच्छे और बुरे कामों को,मन की आंखों से तुम तोलो।जब बोलो तब सच-सच बोलो,कभी न बातें रच-रच बोलो।। हंसकर मन की गांठें खोलो,दिल से दिल का रिश्ता जोड़ो।जब बोलो तब झुक कर …

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नहीं भूली हूँ

नहीं भूली हूँ मैं आज तकअपने बचपन का वो पहला मकानपिता जी का बनाया वो छोटा मकानकुछ ऋण ऑफिस सेबाकी गहने माँ के काम आएमेरे लिए वो ताजमहल थासफेद न सही लाल ही सहीछत पर सोने का मज़ा तो वैसे भीताजमहल में कहाँ आ सकता थानहीं भूली हूँ आज तक …

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सच

सच लिखूँ तोकविता झूठी हो जाती हैंझूठ लिखूँरिश्ता बेमानी हो जाता हैकशमकश तो हैफिर भी दिल ने यही चाहा हैकि तुम हमेशामेरी कविता में जीवित रहो डाॅ.अनिता कपूरकैलीफोर्निया अमेरिकासंस्थापिका- ग्लोबल हिंदी ज्योतिलेखक,कवि पत्रकार

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खिलने दो

ना तोड़ो कली कच्ची,अभी डाली पे रहने दो।बनके फूल प्यारा-सा,अभी उपवन में खिलने दो। करो न जुल्म कलियों पर,कर लो प्यार इनसे तुम।इनके भी हैं सपने,उन्हें साकार कर दो तुम। रौंदी जाएं ना कलियांहक जीने का इनको है।जहां में मुस्कराने का,हक इनका भी तो है। सजने दो संवरने दो,खुद में …

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सरसों के फूल …

पता है तुम्हें ..मायके जब लौटती हैं बेटियां सर्दी के दिनों में…पीले फूल याद दिलाते हैं …बचपन। पीले फूल याद दिलाते हैं .. शैतानियांपीले फूल याद दिलाते हैं .. नादानियां …दादी ,नानी ,मां की कहानियांपीले फूल याद दिलाते हैं सहेलियों की कहानियां…नरम गरम गुदगुदी बचकानी मिट्टी जैसी खुश्बू वाली चटनी …

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