डॉ सुधीर शुक्ला तीलियां माचिस की लेकर आग ऐसी न लगाओ।हो सके तो राष्ट्र में उनसे, यहां दीपक जलाओ।। आपका उद्देश्य क्या है।यहां आखिर ध्येय क्या है।।राष्ट्र विकसित कर रहा है। प्रश्न उस पर धर रहा है।।धर्म पथ पर हम चले थे। जानते हैं वह छले थे।।एक ऐसा अवसर जब …
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यार डैडी
चंद्रा मनीष मेरे सिरहाने फिर आकर ..एक कप चाय रख दो थोड़ा प्यार से झुंझला कर..फिर से कहो..उठो पियो..चाय ठंडी हो गयी दिखाई पड़ती हैं अब भी..आटा सानते वक्त तुम्हारी उतार कर रखी गयी अंगूठी ..हर रोज़ मुझे अक्सर तुम मोटी रोटियां.. जली भुनी पकाते थे..हम चिल्लाते थे.. तुम चले …
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