*अरुणा मनवर*
ये एक थी टिहरी नहीं..
ये है, एक है टिहरी…
जो जिंदा है,,,
तुम्हारी रग रग में.. पग पग में
तुम्हारे दिन में,, रात में..
इक इक साँस में….
घड़ी की टिक टिक में
सबके सवालों की झिक झिक में..
पसीने की टपकती हर इक बूंद में
मन के भावों की एक एक मूँद में…
जितना इस झील में पानी है उससे गहरी हमारी कहानी है
नीले हरे पानी में झांक कर देखो इसमें है हमारे जन्मों के घर..
विकास के नाम पर हरेला के वो पर्व
ध्यान से सुनो ये है एक टिहरी
ध्यान से सुनो स्कूल की हमारी घंटियों को..
इंटरवल में मां बाबा की आवाजों को…
मंडवें की रोटियों
काफल के उन स्वादों को
खेत खलिहान सारे बाग बगीचे..
सखियों की शादियां थीं
शहनाई की आवाज़े
और थीं पूर्वजों की समाधियां
मन मसोस कर कहते हैं एक थी टिहरी..
इस झील ने भिगोया है हमारे मन को
ये पानी नहीं हमारी आंख के आंसू हैं..
कोई ऐसा विकास लाओ
जो हमारे घर ना डुबाए
जिसमें हमारी यादें बची रहें
लौटा दो हमारे पेड़… हमारी जड़ें.. हमारी डेहरी
एक थी टिहरी..
हमारी यादों की टिहरी..
@अरुणा मनवर