मेंटल हैरेसमेंट भी:औरतों के प्रति सबसे बड़ा अपराध 
बेहद जरुरी बात अब आप सबको पता होनी चाहिए

मेंटल हैरेसमेंट भी:औरतों के प्रति सबसे बड़ा अपराध 

 

मेंटल हैरेसमेंट भी:दोस्तों बेहद जरुरी बात अब आप सबको पता होनी चाहिए वो ये कि घर से लेकर वर्कप्लेस पर होने वाली हिंसा मतलब छेड़छाड़ वल्गर बातें और ऐसा कोई भी काम जो कि आधी आबादी यानि कि हम महिलाओं नारी स्त्री बेटियों ,बालिकाओं की स्मिता और सम्मान को ठेस पहुंचाता हो तो ऐसे मामलों  के खिलाफ भारतीय संविधान में सुरक्षा के नियम बनाए गए हैं। इन नियमों को अपनाकर आरोपी के खिलाफ कंप्लेन दर्ज कर सजा दिलाई जा सकती है।

आज हम जिस गंभीर बात को आपके सामने लाने का प्रयास कर रहे वो ये है  कि क्या केवल  फिजिकल टार्चर या पेन  हैरेसमेंट का हिस्सा है या मेंटल हैरेसमेंट भी महिलाओं के प्रति होने वाले घोर अपराध हैं ।दिल्ली निर्भया कांड के बाद देश में इस सम्बन्ध में कड़े क़ानून की बातें की गई , अगर हम संजीदगी से देखें तो  देशभर में दिन-भर में न जाने कितनी लड़कियां ,महिलाएं और बच्चियां रेप , छेड़छाड़ घरेलू हिंसा और मानसिक तनावजैसी बातों का शिकार होती हैं। अब  जबकि एक बार फिर कोलकाता में ट्रेनी लेडी डॉक्टर के साथ हुई बालात्कार की घटना से पूरा देश सदमे में नजर आ रहा है लिकेन सवाल ये है कि  जब तक मीडिया में ये मामला आता रहेगा तब तक हम बातें करते रहेंगे फिर अगली घटना होने तक ये बहस ठन्डे बस्ते में कैद कर दी जाएगी। ये कुछ बड़ी घटनाएं बड़े शहरों की हैं जो दिखाई पड़  जाती हैं लेकिन गावों और कस्बों में हर रोज़ ऐसी घटनाएं दबा दी जाती हैं ये एक बड़ी सच्चाई है।  ऐसी न जाने कितनी घटनाओं में कोई  न कोई महिला घरेलू हिंसा ,रेप और मेंटल हैरेसमेंट से दो चार होती है। 

मेंटल हैरेसमेंट, शारीरिक और मानसिक तनाव के लिए भी सजा का प्राविधान 

महिलाओं को ऐसे मामलों और उनकी प्रवृति के बारे में पता होना चाहिए भारत सरकार और क़ानून में  शारीरिक और मानसिक तनाव के लिए क्या सुरक्षा नियम हैं ।वर्कप्लेस पर हैरेसमेंट चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक हो किसी के लिए भी तनाव का कारण होता है और अपराध की श्रेणी में आता है देश में मानसिक उत्पीड़न से कर्मचारियों को बचाने के लिए कई  कानून और नियम बनाए गए हैं।

 लखनऊ हाईकोर्ट वकील परमजीत कौर 

घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005

इस अधिनियम  के तहत पीड़ित महिला को उसकी ससुराल में रहने का अधिकार दिलाता है। इस अधिनियम में महिलाओं को ‘हिंसा मुक्त घर में रहने’ के लिए सुरक्षा प्रदान की गई है। इस अधिनियम में कानून के तहत विशिष्ट प्रावधानों के साथ एक विशेष विशेषता है जो एक महिला को “हिंसा मुक्त घर में रहने” के लिए सुरक्षा प्रदान करती है। हालांकि इस अधिनियम में दीवानी और आपराधिक प्रावधान हैं, लेकिन एक महिला पीड़ित 60 दिनों के भीतर तत्काल दीवानी उपचार प्राप्त कर सकती है। पीड़ित महिलाएँ इस अधिनियम के तहत किसी भी पुरुष वयस्क अपराधी के खिलाफ मामला दर्ज कर सकती हैं जो उसके साथ घरेलू संबंध में है। वे अपने मामले में उपचार प्राप्त करने के लिए पति और पुरुष साथी के अन्य रिश्तेदारों को भी प्रतिवादी के रूप में शामिल कर सकती हैं।

अधिनियम की मुख्य विशेषताएं:

  • धारा 17 के तहत निवास का अधिकार सुनिश्चित करता है।
  • आर्थिक हिंसा को मान्यता देकर आर्थिक राहत सुनिश्चित करता है।
  • मौखिक और भावनात्मक हिंसा को पहचानता है।
  • बच्चे की अस्थायी हिरासत प्रदान करता है।
  • मामला दर्ज होने के 60 दिनों के भीतर निर्णय दिया जाएगा।
  • एक ही मामले में एकाधिक निर्णय।
  • पीडब्ल्यूडीवी अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है, भले ही पक्षों के बीच अन्य मामले लंबित हों।
  • याचिकाकर्ता और प्रतिवादी दोनों अपील कर सकते हैं। 

घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के अंतर्गत निम्नलिखित उपाय उपलब्ध हैं

धारा 18– संरक्षण आदेश

धारा 19– वैवाहिक घर में रहने के लिए निवास आदेश

धारा 20 – मौद्रिक आदेश जिसमें स्वयं और अपने बच्चों के लिए भरण-पोषण शामिल है

धारा 21–बच्चों की अस्थायी अभिरक्षा

धारा 22 – उसे हुई क्षति के लिए मुआवजा आदेश

संरक्षण अधिकारी

घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत, पीड़ित महिला को उसके पति या किसी ऐसे वयस्क पुरुष के खिलाफ मामला दर्ज करने में मदद करने के लिए सरकार द्वारा संरक्षण अधिकारी नियुक्त किए गए हैं, जिसने घरेलू हिंसा की है और जो याचिकाकर्ता के साथ घरेलू संबंध में है। संरक्षण अधिकारी महिलाओं को कानूनी सहायता प्रदान करके अदालत का दरवाजा खटखटाने और संबंधित अदालतों से उचित राहत पाने में मदद करते हैं। इसके अलावा, वे पुलिस की मदद से जहाँ भी आवश्यक हो, अदालत के आदेशों का पालन करते हैं। पीड़ित व्यक्ति के पास न्यायिक मजिस्ट्रेट कोर्ट या सेवा प्रदाता के पास या नजदीकी पुलिस स्टेशन में याचिका दायर करने के विकल्प भी उपलब्ध हैं। 

घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम, 2005 के तहत, सेवा प्रदाता अधिसूचित गैर सरकारी संगठनों के सदस्य हैं। वे घरेलू हिंसा के पीड़ितों को न्याय और राहत दिलाने में सभी हितधारकों के साथ समन्वय करते हैं। सेवा प्रदाता पीड़ित महिलाओं को घरेलू घटना की रिपोर्ट दर्ज करने में मदद करते हैं, उनके बच्चों के साथ अल्पावास गृहों में रहने की व्यवस्था करते हैं, उन्हें परामर्श देते हैं और ज़रूरत पड़ने पर पीड़ित को चिकित्सा उपचार दिलाने में मदद करते हैं। वे उन्हें रोज़गार और स्थायी आय सुरक्षित करने में मदद करने के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण भी देते हैं। .. 

 तो चुप रहकर मत सहिये बोलिये और शिकायत करिये देश का क़ानून आपके लिए आपके साथ 

manish chandra

chandra.manish12@gmil.com