हमारी लता दीदी नहीं रहीं

महका करेंगे..

हमारी लता दीदी नहीं रहीं

ज़मीं रो रही है,
आसमां रो रहा है,
आज पूरी कायनात रो रही है,
भारत के सीने पे सोने से महंगा जो तमगा था- कुदरत ने केवल हिंद को सौपा था,

तिरंगे को भी नाज़ है कितनी कीमती दौलत से लिपटा है वो आज..

कभी नेहरु रोए थे सुनकर ज़रा आॅंख में भर लो पानी..

गुलजार रो रहे हैं–
मेरी आवाज़ ही पहचान है.. अब यही आखिरी दस्तख़त है दीदी का ..
आज सुन्न हो गया है दिमाग़ क्या बोलें क्या लिखें कौन सा गीत तुम्हारा गुनगुनाएं,

कि सब से दूर हो गए हो ना वो समझ सके न हम,
अजीब दास्तां है ये न वो समझ सके ना हम
अजीब दास्तां है ये
जो आता है वो जाता है
हमने देखी है उन आंखों की महकती खुशबू
ज़िंदगी और कुछ भी नहीं तेरी मेरी कहानी है
जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे
हां तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे,
अश्कों से भीगी चांदनी में सदा सी सुनेंगे चलते चलते यहीं पे कहीं बन के कली बन के सबा बाग ए वफ़ा में

मीडिया बाॅक्स इंडिया परिवार की ओर से हम सबका नमन , दीदी आप हमेशा हमारी साॅंस की बनकर आवाज बजती रहोगी

मनीष चंद्रा