अवश्य पढ़ें एक सच्ची आपबीती कहानी

रामेंद्र सिंह
वरिष्ठ पत्रकार

बात कोई 13 वर्ष पहले की है। मैं अमृतलाल नागर की “ये कोठी वालियां” पुस्तक पढ़ रहा था। तभी मेरे मन में विचार आया क्यों ना इस पेशे से जुड़ी हुई महिलाओं के अंतर्मन के दर्द पर एक 30 मिनट की स्टोरी की जाए। क्योंकि दुनिया उनका केवल एक पक्ष जानती है और दूसरा पक्ष जानना भी नहीं चाहती है। मैंने जब रिसर्च शुरू किया तो मेरी बात इन लोगों के बीच काम करने वाली संस्था के मालिक भोला लाल खैराती से हुई। हमने उनको अपना प्रस्ताव बताया और उनसे मदद मांगी जिसे थोड़ी देर की बातचीत के बाद उन्होंने स्वीकार कर लिया। उन्होंने हमें अपने कोठे का पता बताया और कहा कि वहां जाने पर आपको लोग काफी जानकारी उपलब्ध करा देंगे। दूसरे दिन हम दिल्ली के जीबी रोड पर कोठा नंबर 50 जो भोला लाल खैराती उसे पर जा पहुंचे। यह कोठा जीबी रोड के प्रथम तल पर स्थापित था। जब हम कोठे पर जाने के लिए सीढ़ियां चढ़ रहे थे तो हमें सीढ़ियों के दोनों किनारो पर कम वस्त्रों में कम उम्र की लड़कियां और महिलाएं इशारे करती हुई रोकने लगी लगी। हमने उनको अपना परिचय दिया और प्रथम तल भोला लाल खैराती के कोठे पर पहुंच गया। कोठे पर काम करने वाली महिलाओं ने हमें संचालक के पास पहुंचा दिया। उन्होंने हमारा परिचय पूछा और उत्तर प्रदेश से रिश्ता होने के कारण उन्होंने बताया कि वह भी कानपुर के रहने वाले हैं। मैंने उनसे तमाम सवाल किया जिसका वह उत्तर देते रहे। हमने उनसे यह भी निवेदन किया कि हमको कैमरे पर कुछ लोगों से बात करना पड़ेगी। उन्होंने हमारा यह निवेदन भी स्वीकार कर लिया। वहां व्यवसाय कर रही महिलाओं ने हमें पानी पिलाया, पान खिलाया और हमारे साथ बैठकर बात करती रही। जब कोई ग्राहक आ जाता वह चली जाती और फिर थोड़ी देर बाद लौटकर बात करने लगती। उन्होंने जो अपने दर्द बताएं वह दर्द ना दुनिया सुनना चाहती है और ना ही उन्हें जानना चाहती है। उन्होंने बताया कि जिस कोठे पर हम व्यवसाय करते हैं वह कोठा मलिक हमसे आधा पैसा ले लेता है। दलालों को भी हमें पैसा देना पड़ता है नहीं तो वह हमारे कोठे की तरफ ग्राहक नहीं आने देते हैं। कई बार वह ग्राहकों से झगड़ा करते हैं और नाराज होने पर हम लोगों की पीठ पर ब्लेड से वार कर देते हैं। हम जिन परिवारों के कारण यहां आते हैं वहां जाने के सारे रास्ते भी हमारे लिए बंद हो चुके होते हैं। बच्चे होने पर हम उनको इस माहौल से दूर रखने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं। बच्चो की अच्छी परवरिश इस माहौल से दूर रखकर अपने शरीर को खपाकर पूरा करते हैं। लेकिन यही बच्चे जब पढ़ लिख कर बड़े हो जाते हैं तो वह मेरी तरफ देखना भी नहीं चाहते हैं। क्योंकि वह समाज को यह नहीं बताना चाहते हैं कि उनकी मां एक वैश्या है। इस कोठे पर आने के बाद समाज के सारे रास्ते लगभग हमारे लिए बंद हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि लगभग 30 साल की उम्र तक ही कोई महिला ठीक से इस पेशे में काम कर पाती है उसके बाद वह कई बीमारियों का शिकार हो जाती है। फिर पूरा जीवन उन बीमारियों से लड़ते-लड़ते दवाइयां के साथ बीतता है। अंत तो इससे भी बुरा होता है जब कोई अपना कंधा देने वाला भी नहीं रहता है। मैं इस स्टोरी के लिए अधिक से अधिक रिसर्च कर लेना चाहता था जिससे जब स्टोरी चले तो उन लोगों को जो वहां सुख की तलाश में जाते हैं उनके दर्द का एहसास हो। मैंने कोलकाता में सोनागाछी का दौरा किया जो देश का सबसे बड़ा वेश्यालय है। लेकिन यह अन्य स्थानों की तरह नहीं है, यहां का व्यवहार बड़ा ही शालीन है। यहां से गुजरने वाला ग्राहक जब किसी से बात करेगा तभी वह लोग उससे बात करते हैं अन्यथा वह इसे छेड़ते नहीं है। यह वही सोनागाछी है जहां की मिट्टी कई शुभ कार्यों और मूर्तियां बनाने में भी इस्तेमाल की जाती है। मैं अपनी स्टोरी के खोज में एक कोठे पर अपने मित्र के साथ पहुंचा तो हमारे सामने एक सुंदर स्त्री खड़ी थी। उसने बड़े आदर के साथ हम लोगों को अंदर बुलाया और फिर हमसे वहां आने का कारण पूछा। हमने कहा कि हम यहां नृत्य देखने आए हैं, उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया कि यहां कौन नृत्य देखने आता है आइए आप नृत्य देखिए शेष बातें आगे होगी। मैंने अपने मित्र की ओर देखा और अपने आराध्य को प्रणाम किया कि प्रभु सम्मान के साथ यहां से जाने का अवसर देना। मैं नृत्य देखता रहा और तमाम बातें भी करता रहा। उनके कई फोटोग्राफ्स हमने अपने मोबाइल में लिए। उन्होंने बड़ी शालीनता से बताया कि हम भी किसी परिवार से आते हैं पर मजबूरी में हमें यह पेशा करना पड़ रहा है। किसी ने आकर उसको बताया कि तुम्हारा कोई पुराना आशिक आया है और वह तुमसे मिलना चाहता है। उसने शालीनता से कहा कि उनको बैठाओ, चाय पिलाओ, हम आधे घंटे बाद हम उनसे बात करते हैं। आखरी में मैंने उनको अपना परिचय दिया और आने का कारण भी बताया तो उन्होंने निवेदन किया कि हमारा फोटो मत प्रचारित करना क्योंकि हमारा भी परिवार है, अन्यथा वहां हमारा रहना मुश्किल हो जाएगा।
इतना रिसर्च करने के बाद भी मैं अपने एक मित्र की ईर्ष्या के कारण यह स्टोरी नहीं कर सका। 3 महीने बाद एनडीटीवी ने ऐसी ही एक स्टोरी प्रसारित की तब हमसे स्टोरी करने के लिए कहा गया। मैं ऑफिस के इस व्यवहार से इतना दुखी हो चुका था कि मैंने यह स्टोरी करने से मना कर दिया। आज बहुत दिन बाद यह वाकया याद आया तो मुझे लगा समाज के सफेदपोशो को भी यह सब जानना चाहिए, हो सकता है उनका नजरिया उन महिलाओं के प्रति बदले जो मजबूरी में इस पेशे से जुड़ी हुई है।